यह भी सत्य है की कोई भी महामारी और आपदा को एक दिन थमना ही होता है और फिर से एक नई शुरुवात होती है। ठीक उसी तरह जैसे कोरोना का भयावह देशव्यापी महामारी काल था। कोरोणा ने विश्व भर में भयावह और व्यापक महामारी फैलाकर जान माल और प्राण ली। पर उसे जाना पड़ा और एक दिन फिर से नया सवेरा। नई हवा, नई रोशनी और सब कुछ पहले की तरह सामान्य। कोराेना ने सोंचा कि वह प्रकृति और प्रकृति के नियम को बदल देंगी। पर ऐसा हुआ नही। कोराेना को जाना पड़ा। ठीक उसी तरह देश से समाज से येसे लोगो को जाना पड़ेगा। जो देश में, समाज में अंधश्रद्धा की आपदा फैलाकर अपनी उल्लू सीधा कर रहे हैं। निहायत ही उनके लिए देर सबेर देश में अंधश्रद्धा आपदा उन्नूमुल्लन प्रबंधन की आवश्यकता पड़ेगी।
छत्तीसगढ़ भिलाई। दुर्ग जिले में इन दिनों बाबाओं का आगमन प्रस्थान और प्रवचनों का व्याख्यान जोरो पर है। बता दें कि प्रत्येक राजनीतिक दल ने प्रमुख प्रमुख नामी गिरामी बाबाओं और संतो का कार्यक्रम कस्बे कस्बे और शहर शहर में बड़े व्यापक स्तर पर चला रहे है। उक्त नामी गिरामी बाबाओं और संतो के कार्यक्रम से समाज का कितना कल्याण होता है, कितने लोग आमजीवन में सुधार लाते है, कितने लोग शांति, सद्भावना, भाईचारा और झूट, कपट को त्याग कर सादगी, समभाव, समानता एवं न्यायपूर्वक जीवन जीने की ओर अग्रसर होते है। यह तो दिखाई नही देता, बल्कि अंधभक्ति और आडंबर जरूर दिखने लगा है। कोई व्यक्ति परिवार में अपने माता पिता की, सास अपने बहु को, और बहु अपने सास ससुर की सेवा जतन ना किए होंगे, उससे ज्यादा शीघ्रता और तत्परता से इन धर्म के ठेकेदार बाबाओं और संतो को पालने वाले नेताओं के अगुवाई में आमंत्रित कार्यक्रमों के आयोजन में भारी भीड़ के साथ अन्न,वस्त्र,रुपए,श्रीफल, मेवा, मिस्ठान को साथ लेकर पहुंचने लगते है। और बाबाओं एवं संतो द्वारा प्रवचनों को लगतार 2, 3 दिनों तक सुनते रहते है। पर हासिल क्या होता है ?
भिलाई दुर्ग या छत्तीसगढ़ के इतिहास में क्या कोई संत महात्मा और बाबाओं ने वैचारिक अध्यात्म परिवर्तन कराया, जिसके बातो में विचारो में शब्दो में संस्कार में और प्रवचन के बोल में दम था। शायद इसका जवाब लोग ना दे सके। और कमतर बुद्धिजीवी एवं वर्ग समुदाय है जो उन्हे श्रहर्ष वंदन स्वीकार एवं उनके अमृत वचन को अंगीकार करते रहे है। जी हां तरुण सागर जी महाराज के आगे सब फीके है। उनके ओज अमृत वाणी से क्या महिला, पुरुष, जवान, वृद्ध और बेटे,बेटी या सास बहू हो। सबको सबके कर्तव्य और ज्ञान के साथ कर्म, व्यवहार और आचरण का मार्ग दर्शन करा जाते है। फिर शासन प्रशासन हो या राजनेता। जनता हो या अगुवाई उनके कड़वे वचन के बोल सुनकर सब धूल जाते रहे है। और सुकर्म करने का रास्ता अख्तियार करते है। उनके कार्यक्रमों में आडंबर नही होता और उनके अगुवाई एवं आयोजनकर्ता चंदा चकोरी नही करते। कड़वे वचन के ज्ञानअमृत रसवादन कराने वाले संत महात्मा महाराज कुछ लेते नही। ना ही अंध विश्वाश और आडंबरों में लपटेने की कोशिश करते। कड़वे वचन के प्रवचनकार संत महात्मा तो अपना सब कुछ त्याग कर, कठिन तप और साधना से समाधि को प्राप्त करते है और देश, दुनियां, समाज, परिवार को दर्श्यत अमृतज्ञान दे जाते है। पर वर्तमान समय में संत महात्माओं के कार्यक्रमों को शहर, कस्बों और गांवो में आयोजित कराने की होड़ सी हो चली है। उनसे आम जनता, समाज, परिवार को क्या फायदा। रही बात उन प्रवचनकारो की तो उनके आगमन, आयोजनों, मान सम्मान और स्वागत, पान प्रसाद व्यंजन में लाखों करोड़ों रूपयो की खर्च। और यह इतने सारे रूपयो की खर्च कहां से? , कौन खर्च करता है इनके आयोजनों और कार्यक्रमों में और क्यों खर्चते है इनके कार्यक्रमों और आयोजनों में ?, इनके कार्यक्रमों और आयोजनों से छात्र छात्राओं को बेरोजगार युवक और युवतियों को क्या फायदा होता उनके परिवारों को क्या मिलता है। बुद्धिजीवी वर्ग, छात्र और बेरोजगार युवक युवतियों का कहना है कि राजनेता हो या धर्म के ठेकेदार ऐसे आयोजन और कार्यक्रम कर प्रत्येक व्यक्ति, परिवार समाज और जनता का ध्यान वास्तविक जीवनयोगी उपयोगिता के साधन और वस्तुओ की मांग से हटाकर धर्म के आडंबरी जीवन में अंधभक्त बन बंधे रहने का मार्ग प्रशस्त करवाते है। अगर वास्तव में उन संत महात्माओं को प्रवचन और व्याख्यान देना हो और सामाजिक रूप से युवाओं का युवतियों का परिवार का और देश समाज का पतन इन्हे दिखता हो और सुधार करने की इच्छा रखते हुए संत महात्मा बनते है तो कड़वे वचन की बोल की तरह घूसखोरी बंद करवाने पर प्रवचन देवे।, तानाशाही बंद करवाने, और मजदूरों की रेजगारी, उनके मजदूरी, मेहनताना बढ़ाने पर प्रवचन देवे। कमीशन खोरी बंद करवाने, मरीजों से ईलाज के नाम पर लाखों लाखो रुपए की हो रही लूट और मौत पर प्रवचन देवे। बड़े बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल और नर्सिंग होम बंद करवाकर सरकारीकरण करने पर प्रवचन देवे। हर हांथ को काम हर हांथ को दाम दिलाने के लिए प्रवचन देवें। स्कूल, महाविद्यालय और हर उच्च शिक्षा का स्तर सरकारी संस्थान में समान रूप से करवाने पर प्रवचन देवें। आजकल वर्तमान मेंं ढोंगी बाबा साधु, संतो के सहारे देश में राजनीति की बाढ बह चली है। बुद्धिजीवी वर्ग और युवाओं को चाहिए कि अंधश्रद्धा उन्नूमुल्लन बाढ़ राहत शिविरों का अयोजन हो और प्रभावितो के लिए बचाव केद्र खोला जाए। और उन आयोजन कर्ताओ से जजमान मंडली के आगमन और उन दान दाताओं से कार्यक्रम के आयोजन में दान की गई हजारों लाखो की राशि को सार्वजनिक कराया जाएं, कही उनके द्वारा दी गई राशि आप लोगो की खून पसीने की कमाई तो नही। क्या उनके द्वारा दी गई चंदे की राशि घूसखोरी व कमीशनखोरी के पैसे तो नही। उनके द्वारा दी जा रही चंदे की राशि कालेधन तो नही। क्या उनके द्वारा दी गई दान के चंदे या राशि उनके अवैध कारनामों को ढकने के लिए तो नही। क्या इन विषयों पर कोई प्रवचन देकर हिन्दू धर्म, समाज और राष्ट्र बनाएगा। निश्चित ही इन वर्तमान ज्वलंत विषय शास्त्र मुद्दों पर चर्चा परिचर्चा, प्रवचन देने पर नगण्य धर्म ठेकेदारों ढोंगी साधुओं और राजनेताओ के अलावा पूंजीपतियों के कोपभाजन के शिकार हो जायेंगे। मगर यह भी सत्य है की कोई भी महामारी और आपदा को एक दिन थमना ही होता है और फिर से एक नई शुरुवात होती है। ठीक उसी तरह जैसे कोरोना का भयावह देशव्यापी महामारी काल था। कोरोणा ने विश्व भर में भयावह और व्यापक महामारी फैलाकर जान माल और प्राण ली। पर उसे जाना पड़ा और एक दिन फिर से नया सवेरा। नई हवा, नई रोशनी और सब कुछ पहले की तरह सामान्य। कोराेना ने सोंचा कि वह प्रकृति और प्रकृति के नियम को बदल देंगी। पर ऐसा हुआ नही। कोराेना को जाना पड़ा। ठीक उसी तरह देश से समाज से येसे लोगो को जाना पड़ेगा। जो देश में, समाज में अंधश्रद्धा की आपदा फैलाकर अपनी उल्लू सीधा कर रहे हैं। निहायत ही उनके लिए देर सबेर देश में अंधश्रद्धा आपदा उन्नूमुल्लन प्रबंधन की आवश्यकता पड़ेगी।
राजेश प्रसाद संपादक शाश्वत कलम