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छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कुछ राजनीतिक दलों ने पत्रकारों को भी बैकवर्ड/ फारवर्ड के चश्में से देख सहयोग की मनःस्थिति बनाई।

दुर्ग। छत्तीसगढ़ में विधानसभा का चुनावी पर्व चल रहा है, प्रत्येक राजनीतिक दलों के प्रत्याशी चुनाव में अधिकृत रूप से पार्टी का चुनाव लड़ रहे है। वह अपने स्तर पर जनता से जनसंपर्क कर प्रचार प्रसार अभियान चला रहे है। लेकिन उन्हें जनता के पास अपनी बात रखने के लिए मीडिया की नितांत आवश्यकता पड़ती है, जिसके माध्यम से वह अपने अपने दलों की घोषणा पत्र, अपनी बात- विचार और क्रियान्वित कार्यों एवं जनता के बीच घोषणाओं के आधार पर सरकार बनने, बनाने और कार्य किए जाने के वादे करते है। ताकि उनके कार्यों एवं वादों पर जनता उन्हे वोट दे, और वह सरकार बना सके। ज्ञात हो कि इन सबके बीच मीडिया चाहे वे प्रिंट हो या इलेक्ट्रानिक पोर्टल, यूट्यूब, या चैनल एक सशक्त माध्यम बन कार्य करती है। फिर चाहे वह छोटे बड़े, दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्र ही क्यों ना हो। सभी के समाचारों का प्रसारण पंजीकृत सरकारी संस्थान के द्वारा पंजीयन होने के बाद ही प्रसारण का अधिकार है। फिर वास्तविकता की सच्चाई उनके स्वतंत्र लेखन है और प्रसारण के बोल है। चाहे वह कलम की लेखनी हो या उनके आवाज। मीडिया को किसी चश्में की नजरिए से नही देखी जानी चाहिए। लेकिन दुर्ग जिले के विधानसभा में चुनावी पर्व के दौरान कुछ दलों द्वारा पत्रकारों को बैकवर्ड/ फारवर्ड के चश्में से देख सहयोग की मनःस्थिति बनाते हुए देखा गया। उक्त कृत्य से पत्रकार जगत ने उन राजनीतिक दलों के प्रत्याशीयों पर रोष व्यक्त किया और उनके राजनीतिक चुनाव संचालको पर नाराजगी जताई। और कहने लगे कि नेताओं ने पत्रकारों को अब तुच्छ समझ लिया है। इस लोकतन्त्र के चुनावी पर्व में शायद उन दलों के प्रमुख ने आंकलन लगाया होगा कि उन दलों के पक्ष या कवरेज कर लोकप्रियता दिलाने में अछुन्न रहा हो। बरहाल पत्रकार अपनी शक्ति का प्रयोग नही करते। जिस दिन से पत्रकार इनके समाचारों का प्रकाशन बंद कर दे और उनकी सच्चाई छाप उस दिन से मीडिया और समाचार पत्र की अहमियत राजनीतिक दलों को मालूम हो जायेगी।

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