
सुप्रीम कोर्ट से बिहार सरकार को लगा बड़ा झटका, राज्य को आरक्षण सूची मे बदलाव का अधिकार नहीं :सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि राज्यों को अनुसूचित जाति (एससी) की सूची को संशोधित करने का कोई अधिकार नहीं है. यह शक्ति विशेष रूप से संसद में निहित है, क्योंकि एससी सूची में कोई भी गलत समावेश वास्तविक एससी सदस्यों को उनके वैध लाभों से वंचित करता है।
2015 के बिहार सरकार के प्रस्ताव को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) सूची से तांती-तंतवा के एससी सूची में पान, स्वासी, पानर के साथ विलय को एक दुर्भावनापूर्ण अभ्यास मानते हुए अमान्य करार दिया।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने घोषणा की कि राज्य सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत एससी सूची में बदलाव करने का अधिकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि हमें यह मानने में कोई झिझक नहीं है कि एक जुलाई 2015 का संकल्प स्पष्ट रूप से अवैध था. क्योंकि राज्य सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जातियों की सूचियों के साथ छेड़छाड़ करने की कोई अधिकार नही है।
राज्य के पास एससी सूची में बदलाव का अधिकार नहीं
2015 में एससी लाभ के लिए “तांती-तंतवा” को पान, सवासी, पानर के साथ विलय करने की बिहार की अधिसूचना को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, लेकिन अदालत ने बरकरार रखा था, कई याचिकाकर्ताओं और संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की और वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जय सिंह के नेतृत्व में, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि राज्य के पास एससी सूची में बदलाव करने का अधिकार नहीं है, जिसे केवल संसद में संशोधित किया जा सकता है।
जस्टिस विक्रम नाथ के फैसले ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि एससी सूची में कोई भी बदलाव संसद द्वारा अधिनियमित किया जाना चाहिए। अदालत ने तांती-तंतवा को एससी लाभ देने की बिहार की कार्रवाई को एक गंभीर संवैधानिक उल्लंघन पाया और इस बात पर जोर दिया कि इस तरह के कदम वास्तविक एससी सदस्यों को उनके लाभों से वंचित करती हैं।
आरक्षण से वंचित करना एक गंभीर मुद्दा
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि राज्य की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण और संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करने वाली पाई गई है, राज्य को उसके द्वारा किये गये काम के लिए क्षमा नहीं किया जा सकता. संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत सूची में शामिल अनुसूचित जाति के सदस्यों को आरक्षण से वंचित करना एक गंभीर मुद्दा है. कोई भी व्यक्ति जो योग्य नहीं है और ऐसी सूची में शामिल नहीं है, यदि राज्य द्वारा जानबूझकर और शरारती कारणों से इस तरह का लाभ दिया जाता है, तो वह अनुसूचित जाति के सदस्यों का लाभ नहीं छीन सकता है।