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माघी पूर्णिमा मेला : गौ तीर्थ बानबरद : राजिम कुंभ – डॉ. नीलकंठ देवांगन के कलम से..

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माघ पूर्णिमा हिंदुओं के लिए धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है । इस महीने में मघा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने के कारण इसका नाम माघ पड़ा। इस दिन भगवान विष्णु और चंद्रदेव की पूजा की जाती है। यह शुभ दिन माघ महीने की पूर्णिमा के दिन आती है। इस दिन लोग सत्यनारायण का व्रत रखते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से इसका बहुत महत्व है। गंगा नदी में स्नान करते हैं और दान पुण्य करते हैं। भगवान विष्णु भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इस महीने की गई सभी दान पुण्य फलदायी होते हैं। माघ पूर्णिमा के साथ ही कल्पवासी तीर्थ यात्रियों का महीने भर की तपस्या पूरी होती है। इस महीने शीतल जल के भीतर डुबकी लगाने वाले पाप मुक्त हो जाते हैं और स्वर्ग लोक जाते हैं। इस पवित्र दिन कई स्थानों पर मेले लगते हैं।

दुर्ग जिला के धमधा विकास खंड के नंदिनी थानांतर्गत स्थित ग्राम बानबरद का पूरे छत्तीसगढ़ में खास पहचान है, प्रसिद्धि है | यहां गौ हत्या के पाप कटते हैं | इसे गौ तीर्थ कहा जाता है | यहां का चतुर्भुजी विष्णु मंदिर, पास का पवित्र कुंड एवं यहां का गतवा तालाब विशेष महत्व रखते हैं | गौ हत्या के पापी यहां आते, कुंड में या गतवा तालाब के पवित्र जल में स्नान कर मंदिर के पुजारी से पाप मुक्ति हेतु पूजा पद्धति से गुजरते, कुछ दान पुण्य करते, उनके पाप कट जाते हैं |

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बाणासुर की नगरी, वरदानी भूमि है बानबरद- द्वापर युग की बात है | बाणासुर बड़ा पराक्रमी था | उन दिनों असुरों एवं देवताओं में युद्ध होते रहते थे | एक बार श्री कृष्ण के साथ उसका युद्ध हुआ | परास्त करने अपने सारे अस्त्र शस्त्र छोड़े | उसके बाणों से कृष्ण की कई गायें मर गयीं, कई घायल हो गयीं और कइयों को खुरहा रोग हो गया | लड़ाई तो वह जीत न सका, उल्टा उस पर गौ हत्या का पाप चढ़ गया |
उसे पाप बोध हुआ | ग्लानि से भर गया | पाप मुक्ति का उपाय ढूंढ़ा | नहीं मिला | वह शिवजी का भक्त था | उसने उनका ध्यान किया और प्रायश्चित का मार्ग पूछा | शिवजी उसकी भक्ति एवं तपस्या से प्रसन्न तो थे ही, बताया- ‘ अमुक स्थान पर श्री विष्णु की प्रतिमा जमीदोज है | जाकर उसे निकालो, पूजा स्तुति करो, पास के कुंड में स्नान कर दान पुण्य करो | पाप कट जायेंगे |
बाणासुर वहां गया | निर्दिष्ट स्थान पर जमीन खोद चतुर्भुज विष्णु के श्री विग्रह को निकाला | भावना के साथ पूजन किया | कुंड में स्नान कर दान पुण्य किया | उसे गौ हत्या के पाप से मुक्ति मिली | वह माघ पूर्णिमा का शुभ दिन था | तब से यहां गौ हत्या के पाप कटते हैं और हर साल माघी पूर्णिमा को विशाल मेला लगता है |

नामकरण- बाणासुर ने तब इसे अपने मुआफिक बसाया | इसे अपनी राजधानी बनाया | चूंकि यह बाणासुर की नगरी थी, वरदानी भूमि थी, इसका नाम पड़ा- बानबरद |

पाप मुक्ति- गौ हत्या के पाप से प्रायश्चित हेतु लोग यहां आते हैं | पहले तो 21 दिन घर छोड़ अन्य गावों में जाकर भिक्षा याचन कर तांबे के बरतन में खाते, जमीन पर सोकर रात बिताते | अंतिम दिन यहां आकर कुंड या गतवा तालाब में स्नान कर मंदिर के पुजारी से हवन पूजा करा दान दक्षिणा देते थे | बताते हैं कि अब तो कोई 7 दिन में, कोई 5 दिन में तो कोई 3 दिन में ही यहां आकर निवृत्त हो जाते हैं |

विष्णु मंदिर- यहां चतुर्भुज श्री विष्णु जी का प्राचीन मंदिर है | पाषाण कला का सुंदर नमूना है | कहते हैं खुदाई में दो मूर्तियां मिली थीं- श्री विष्णु और श्री लक्ष्मी जी की | दोनों मूर्तियां बढ़ती जा रही थीं | कारण वश लक्ष्मी जी की मूर्ति खंडित हो गई | उसका बाढ़ रुक गया | अभी भी गर्भ गृह में चतुर्भुज विष्णु के बगल में वह मूर्ति ढंकी हुई है | चूंकि वह खंडित है, श्री लक्ष्मी जी की दूसरी मूर्ति स्थापित कर दी गई है | बाद में श्री विष्ण- मूर्ति का बढ़ना भी रुक गया |

छः मासी रात में मंदिर बना- कहते हैं जब छः महीने की रात हुई थी, तब मंदिर बना था | जैसे ही सबेरा हुआ, काम रुक गया | इसलिए मंदिर पर कलश नहीं चढ़ा है |
मंदिर 16 – 17 वीं शताब्दी में बना है |

कुंड का नवीनीकरण – कुंड बावली के रूप में था | पानी सूख जाता था | तब वहीं के गतवा तालाब में स्नान कर या वहां से जल लाकर यहां स्नान कर मंदिर में हवन पूजा कराते थे | यह अहिवारा नगर पालिका क्षेत्रांतर्गत है। नगर पालिका ने सीढ़ीदार कुंड बनवा दिया है | नल कूप से पानी भरने की व्यवस्था कर दी है | यह पाप मोचन कुंड कहलाता है | पास के क्षेत्र को सुंदर बगीचा बना दिया है |
कुंड के पास ही ‘अकोल ‘ वृक्ष है | यह दुर्लभ एवं समृद्धि का सूचक है |

उषा अनिरुद्ध की पौराणिक कथा- बाणासुर की पुत्री राजकुमारी उषा को स्वप्न हुआ- ‘ वह एक सुंदर पुरुष के साथ विहार कर रही है | ‘ सपने की बात सहेली चित्ररेखा को बताई | वह चित्र बनाने में माहिर थी | बताये अनुसार चित्र बनाती गई | वह अनिरुद्ध था, कृष्ण का नाती, प्रद्युम्न का पुत्र | उसने रात में जाकर सोते अनिरुद्ध को पलंग सहित उषा के महल में ला दिया | उसे यह कला आती थी।
उधर द्वारिका में अनिरुद्ध के गुम होने की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई | पता साजी की गई | पता नहीं लग रहा था | नारद जी आए | अंतरदृष्टि से देखा | बताया- वह तो बानबरद में उषा के महल में है |

बाणासुर को मृत्यु का पूर्वाभास – इधर नित्य की भांति बाणासुर प्रातः उठा | स्नान कर मंदिर जाने के लिए निकला तो महल में लगा ध्वज नीचे गिरा पड़ा था | डर गया | उसे अपनी मौत सामने दिखने लगा | उसे यह ध्वज शिवजी से वरदान में मिला था। बताया गया था कि जिस दिन यह ध्वज नीचे गिर गया, अपनी मृत्यु को निकट जानना। उसी समय गुप्तचरों से सूचना मिली- ‘उषा के महल में कोई पर पुरुष है | ‘ माथा ठनका | उषा को बुलवाया | सपने की बात बताते उषा ने साफ कह दिया- ‘ पिताजी, मैंने उनको अपना जीवन साथी मान लिया है | ‘
उधर अनिरुद्ध को वापस लाने दूत भेजा गया | बाणासुर ने मना कर दिया | अब युद्ध ही एक मात्र उपाय था | बलराम, कृष्ण, प्रद्युम्न सैनिकों के साथ आये | भयंकर युद्ध हुआ | बाणासुर कमजोर पड़ने लगा | शिवजी को याद किया | शिवजी आये | अब तो शिवजी और कृष्ण आमने सामने थे |शिवजी ने बाणासुर को वरदानों का याद कराया | कहा- तुमने अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो जाने का वरदान मांगा था | अपने आप ध्वज गिर जाय, मृत्यु निकट समझना | युद्ध करते नहीं डरे | अब जबकि मौत सिर पर है, इतने डरे, उतावले, उद्विग्न क्यों हो? यह सुन तन शिथिल पड़ गया, मन शरणागत हुआ | उषा अनिरुद्ध की शाही शादी हुई |

मेला– हर साल यहां माघी पूर्णिमा पर विशाल मेला लगता है | दो दिन पूर्व दुकान सज जाते हैं और दो दिन बाद तक रहते हैं | झूले, सर्कस, मौत का कुआं जैसे खेल वाले कई दिनों तक रहते हैं |मेला के दिन मंदिर दर्शन का क्रम दिन भर चलता है | हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं | दर्शन कर अपने को कृतार्थ मानते और मेला का आनंद भी लेते हैं |गतवा तालाब- इस तालाब का बड़ा महत्व है | इसका जल पवित्र माना जाता है | जब कुंड सूख जाता था, इसी के जल से शुद्धिकरण करते थे | कई श्रद्धालु मेला के दिन यहां डुबकी लगाते, फिर मंदिर जाते हैं |खुदाई पर प्रतिबंध- यहां खुदाई करने पर बड़े बड़े ईंटें निकले हैं | कइयों को दैनिक उपयोग की चीजें- सील, लोड़हा, बर्तन, घड़े मिले हैं | सोने के सिक्के भी मिले हैं | 9 सिक्कों को राजसात कर घासीदास संग्रहालय रायपुर में रखा गया है | ये गुप्त कालीन सिक्के हैं | 1 सिक्का कुमार गुप्त, 7 सिक्के स्कंद गुप्त और 1 सिक्का काच गुप्त के समय का है | अब तो शासन ने खुदाई पर प्रतिबंध लगा दिया है |हो सकता है नीचे कोई वैभवशाली नगर दबा हो | मंदिर से थोड़ी दूर एक डीह (ऊंचा स्थान) है, जहां पहले विशाल पीपल वृक्ष था , अब नहीं है | यहां खजाना होने की बात लोग करते हैं |राजिम कुंभ मेला –राजिम अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्राचीन मंदिरों के लिए सुविख्यात है। यहां हर वर्ष माघ महीने में राजिम कुंभ के नाम से मेला का आयोजन होता है। अब यह राजिम कुंभ कल्प मेला के नाम से जाना जाता है। यह माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक चलता है। संत समागम होता है। छत्तीसगढ़ के आसपास के लोग स्नान दान कर लाभान्वित होते हैं। माघ पुन्नी मेला के नाम से भी विख्यात है। यह महानदी, पैरी और सोंढ़ूर नदी के संगम पर स्थित है। इसका नाम कमल क्षेत्र पद्मावती था। पौराणिक कथानुसार ब्रह्मांड के निर्माण के समय यहीं भगवान विष्णु की नाभि से कमल निकला था। विधाता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना यहीं से की थी। इसे कमल क्षेत्र कहा गया।अन्य मान्यताओं में गज ग्राह की लड़ाई में हारते गज ने भगवान का आह्वान किया, दौड़े चले आए। कमल का फूल तोड़ भगवान को समर्पण किया। कमल की कुछ पंखुड़ियां नीचे गिर गईं। पंखुड़ियों से इस नगरी का निर्माण हुआ। इसे कमल क्षेत्र पद्मावती पुरी नगरी कहा जाने लगा। पांच पंखुड़ियों से पंचकोशि महादेव की स्थापना हुई। कुलेश्वर महादेव मंदिरों के केंद्र में है। मंदिर का संबंध राजिम के भक्तिन माता से है। ये पांच महादेव – पटेश्वर, बमणेश्वर, चम्पेश्वर, फिंगेश्वर और फणिकेश्वर के नाम से विख्यात हुए। पांच शिवलिंग है। लोग पैदल चलकर परिक्रमा करते हैं, पंचकोशि यात्रा कहलाती है। इसके अलावा महाकालेश्वर मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, राजिम मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर प्रसिद्ध हैं। साक्षी गोपाल मंदिर मे भगवान विष्णु का दर्शन आवश्यक है। बिना इसके दर्शन अधूरा माना जाता है। राजिम की इतनी महिमा है कि जगन्नाथ पुरी की यात्रा भी राजिम यात्रा के बिना अधूरी मानी जाती है। राजिम क्षेत्र में राजिम माता के त्याग की कथा है।

राजिम छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहलाता है। महानदी गंगा सम मानी जाती है। वैसे माघ मास में सभी नदियों का जल गंगाजल के समान होता है। । अतः नदियों में स्नान का बड़ा महत्व है। पत्नी शांता के कहने पर ऋषि श्रृंगी ने ब्रह्मा की आराधना कर अनाचार अत्याचार को देख जन कल्याण के लिए मृत्यु लोक में फिर गंगा आवे, जिससे सबका कल्याण होवे, गंगा को इस क्षेत्र में आने के लिए मना लिया था। जैसे भागीरथी के तप प्रयास से गंगा आई थी, जिसे श्री शंकरजी ने पहले अपनी जटाओं में धारण किया था, वैसे ही श्रृंगी ऋषि ने इसे पहले अपने कमंडल में समाया था, फिर आगे बढ़ी थी। इसका नाम चित्रोत्तपला गंगा है। पहले यह दक्षिण की ओर जा रही थी तब ऋषि ने उसे उत्तर पूर्व की ओर बढ़ने प्रार्थना किया। तब प्रतिया गांव के पास से वापस हो भगवान राजीव लोचन के चरण धोते हुए जगन्नाथ की ओर गई। कहा जाता है कि महानदी महाशिव के स्वरूप है, पैरी पार्वती के स्वरुप है और सोंढ़ूर गणेश स्वरुप है। इसलिए राजिम में तीनों नदियों का संगम प्रयाग कहलाता है। लाखों लोग राजिम त्रिवेणी संगम में स्नान कर पुण्य कमाते हैं। इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश की भी पूजा की जाती है।मेले में एक दर्जन से ज्यादा अखाड़े, शाही स्नान, साधु संतों का समागम, धर्म गुरुओं का आगमन, झाकियां, कई धार्मिक सांस्कृतिक आयोजन, विभिन्न विभागों के स्टाल प्रदर्शनियां मेले को सार्थकता प्रदान करते हैं। कई प्रतिष्ठित जन भी स्नान करने, डुबकी लगाने, दर्शन करने आते हैं।माघ मास में स्नान, दान, भगवान विष्णु के पूजन और भजन कीर्तन के महत्व में बताया गया है कि व्रत दान और तपस्या से भगवान श्री हरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है। पूर्णिमा में तो यह महत्व और अधिक हो जाता है। इसलिए स्वर्ग लाभ, पापों से मुक्ति और भगवान विष्णु की प्रीति प्राप्त करने मनुष्य को माघ स्नान करना, दर्शन पूजन चाहिए, विशेष पूर्णिमा के दिन तो अवश्य।

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