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राकेश वशिष्ठ (वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादकीय लेखक)
“ लोकतंत्र का चौथा यह स्तंभ पत्रकारिता तभी मजबूत होगा जब प्रत्येक पत्रकार अपनी कलम की ताकत को पहचाने और निष्पक्ष पत्रकारिता के जरिए सरकार, प्रशासन और आम जनता के बीच एक मजबूत सेतु का निर्माण करे सटीक और निष्पक्ष लेखन के माध्यम से सरकार, प्रशासन और समाज को दर्पण दिखाए।”
पत्रकारिता के सभी प्रारूप (प्रिंट, इलेक्ट्रिक, डिजीटल मीडिया, ई पेपर, ई पोर्टल इत्यादि) समाज में एक दर्पण की भूमिका निभाते हैं जिसमे वास्तविक अक्श दिखता है और पत्रकरिता यह भूमिका तभी निभा सकती है जब तक वो निष्पक्ष और तटस्थ रहे अपनी कलम की धार को कुंद ना होने दे तेज बनाए रखें।
आज के सार्वजनिक संवाद की दृष्टि से देखें तो सबसे ज्यादा लोकप्रिय अगर कोई चीज है तो वह है पत्रकारिता। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल अपने इन तीनों स्वरूपों में पत्रकारिता 24 घंटे सूचनाओं की बात समाज तक पहुंचाती है और लोगों की राय बनाने में खासी मदद करती है। जैसे-जैसे समाज जटिल होता जाता है, वैसे वैसे लोगों के बीच सीधा संवाद कम होता जाता है और वे सार्वजनिक या उपयोगी सूचनाओं के लिए मीडिया पर निर्भर होते जाते हैं। उनके पास जो सूचनाएं ज्यादा संख्या में पहुंचती है. लोगों को लगता है कि वही घटनाएं देश और समाज में बड़ी संख्या में हो रही है। जो सूचनाए मीडिया से छूट जाती है उन पर समाज का ध्यान भी कम जाता है। आजकल महत्व इस बात का नहीं है कि घटना कितनी महत्वपूर्ण है. महत्व इस बात का हो गया है कि उस घटना को मीडिया ने महत्वपूर्ण समझा या नहीं। जब आमजन का मीडिया पर इतना ज्यादा विश्वास है तो फिर मीडिया की जिम्मेदारी भी पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। आप सब को अलग से यह बताने की जरूरत नहीं है कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के अलावा मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है।
यहां हम डिजिटल मीडिया की ताकत को नकार नहीं सकते। मजे की बात यह है कि बाकी तीनों स्तंभ की वो हमारे संविधान में अलग से की गई है और उनके लिए लंबे चौड़े प्रोटोकॉल तय है। लेकिन मीडिया को अलग से कोई अधिकार नहीं दिए गए है। संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी का जो अधिकार प्रत्येक नागरिक को हासिल है, उतना ही अधिकार पत्रकार को भी हासिल है। बाकी तीन स्तंभ जहां संविधान और कानून से शक्ति प्राप्त करते हैं, वहीं मीडिया की शक्ति का बीत सत्य, मानवता और सामाजिक स्वीकार्यता है। अगर मीडिया के पास नैतिक बल ना हो तो उसकी बात का कोई मोल नहीं है। इसी नैतिक बल से हीन मीडिया के लिए येली जनलिज्म या पीत पत्रकारिता शब्द रखा गया है। और जो पत्रकारिता नैतिक बल पर खड़ी है, वह तमाम विरोध रहकर भी सत्य को उजागर करती है। संयोग से हमारे पास नैतिक बल वाले पत्रकारों की कोई कमी नहीं है। मीडिया को लेकर आजकल बहुत तरह की बाते कही जाती हैं। इनमें से सारी बातें अच्छी हो जरूरी नहीं है।
पत्रकारिता बहुत से मोर्चों पर दृढ़ता से खड़ी है, तो कई मोर्चों पर चूक भी जाती है। आप सबको पता ही है की बनोई शी जैसे महान लेखक मूल रूप से पत्रकार ही थे। और बढ़ेड रसेल जैसे महान दार्शनिक ने कहा है कि जब बात निष्पक्षता की उठती है तो असल में सार्वजनिक जीवन में उसका मतलब होता है कमजोर की तरफ थोड़ा सा झुके रहना। यानी कमजोर के साथ खड़ा होना पत्रकारिता की निष्पक्षता का एक पैमाना ही है। पत्रकारिता की चुनौतियों को लेकर हम आज जो बाते सोचते हैं, उन पर कम से कम दो शताब्दियों से विचार हो रहा है। भारत में तो हिंदी के पहला अखबार उदत मार्तड के उदय को भी एक सदी बीत चुकी है। टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदू जैसे अखबार एक सदी की उम्र पार कर चुके हैं। दुनिया के जाने माने लेखक जॉर्ज ऑरवेल ने आधी सदी पहले एक किताब लिखी यी एनिमल फार्म किताब तो सोवियत संघ में उस जमाने में स्टालिन की तानाशाही के बारे में थी लेकिन उसकी भूमिका में उन्होने पत्रकारिता की चुनौतिया और उस पर पड़ने वाले दबाव का विस्तार से जिक्र किया है। जॉर्ज ऑरवेल ने लिखा की पत्रकारिता के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह नहीं है कि कोई तानाशाह उसे बंदूक की नोक पर दबा लेगा या फिर कोई धत्रा सेठ पैसे के बल पर पत्रकारिता को खरीद लेगा यहां मैं कहना चाहूंगा कि अगर एक पत्रकार की कलम मैं सच्चाई लिखने की निष्पक्ष ताकत है तो कोई माई का लाल इस ना खरीद सकता है और ना अपने पथ से डिगा सकता है। लेकिन आज कल पत्रकारिता में इनसे बढ़कर भी एक मुख्य जो चुनौती है वह है भेड़ चाल। यानी एक अखबार या एक मीडिया चैनल जो बात दिखा रहा है सभी उसी को दिखा रहे हैं। अगर किसी सरकार ने एक विषय को जानबूझकर मीडिया के सामने उछाल दिया तो सारे मीडिया सस्थान उसी खबर को अपने अपने हिसाब से मिर्च मसाला लगा अलग अलग कलेवर से कवर करते चले जा रहे हैं, यह सोचे बिना कि वास्तव में उसका सामाजिक उपयोग कितना है या कितना नहीं। बड़े संकोच के साथ कहना पड़ता है कि कई बार भारतीय मीडिया भी इस नागपाश में फंस सरकारी मशीनरी, नेताओं या सत्तापक्ष के मोहपाश, प्रलोभन अथवा भय भी कह सकते हैं मैं आ सारे अखबारों की हैडलाइन और सारे टीवी चैनल पर एक से प्राइमटाइम दिखाई देने लगते हैं।
भारत विविधता का देश है. अलग-अलग आयु वर्ग के लोग यहां रहते हैं। उनकी महत्वाकाक्षा अलग है और उनके भविष्य के सपने भी जुदा है। ऐसे में पत्रकार की जिम्मेदारी है कि हमारी इन महत्वकांक्षाओं को उनसे संबंधित विषय वस्तु की खबरों को उचित स्थान अपनी पत्रकारिता में दे। संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों को मजबूत करें। कमजोर का पक्ष ले। देश की आबादी का 85 प्रतिशत हिस्सा मजदूर और किसान से मिलकर बनता है। ऐसे में इस 85 प्रतिशत आबादी को भी पत्रकारिता में पूरा स्थान मिले। मैंने तो बचपन से यही सुना है कि पुरस्कार मिलने से पत्रकारों का सम्मान नहीं होता, उनके लिए तो लीगल नोटिस और सता की ओर से मिलने वाली धमकिया ही असली सम्मान होती है। राजनीतिक दल तो लोकतंत्र का अस्थाई विपदा होते हैं, क्योंकि चुनाव के बाद जीत हासिल करके विपक्षी दल सत्ताधारी दल बन जाता है और जो कल तक कुर्सी पर बैठा था, वह आज विपक्ष में होता है। लेकिन पत्रकारिता तो स्थाई विपक्ष होती है।
पत्रकारों को फील्ड में रिपोर्टिंग करते समय अधिकतर जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें से मुख्य रूप से रिपोर्टिंग करते समय किसी खबर की तहकीकात करते समय समाज कंटकों की तरफ से जान लेवा हमले, धमकियां मिलना आज कल आम बात हो गई है पत्रकारों की हत्याओं तक की वीभत्स घटनाएं समाज पटल पर आती हैं तो क्या पत्रकार इस देश का नागरिक नहीं है? यदि है तो उसकी सुरक्षा के प्रति सरकार सजग और संवेदनशील क्यों नहीं है लंबे समय से पत्रकार साथियों के लिए कठोर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग की जा रही है ताकि पत्रकारों की जान माल की हिफाजत सुनिश्चित हो यहां सरकार को संवेदनशीलता दिखाते हुए कठोर पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने का कार्य करना चाहिए।
पत्रकारिता एक स्वच्छ आईने की तरह सत्ता की नाकामियों और उसके काम में छूट गई गलतियों को सार्वजनिक करती है ताकि भूल को सुधारा जा सके और संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों के मुताबिक राष्ट्र का निर्माण किया जा सके। मध्यप्रदेश इस मामले में हमेशा से ही बहुत आगे रहा है प्रभाष जोशी और राजेंद्र माथुर जैसे प्रसिद्ध संपादक मध्य प्रदेश की पवित्र भूमि की ही देन है। आज भी राष्ट्रीय पत्रकारिता के क्षेत्र पर मध्य प्रदेश के पत्रकार अपनी निष्पक्षता की छाप छोड़ रहे है।पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है पत्रकारिता के सभी प्रारूपों (इलेक्ट्रिक मीडिया, प्रिंट मीडिया और डिजीटल मीडिया के सभी मान्यता प्राप्त बड़े मीडिया समूहों के पत्रकारों के साथ छोटे ई पेपर ई पोर्टल के छोटे पत्रकार भी होते हैं जिन्हें दोयम दर्जे का कहा और समझा जाता है यहां हमको डिजिटल मीडिया के इन सशक्त माध्यम (ई पेपर , ई पोर्टल यू ट्यूब चैनल) को पहचानना होगा क्योंकि जितनी तीव्रता से किसी खबर को डिजिटल मीडिया प्रचारित और प्रसारित करती है उतना कोई अन्य माध्यम नहीं कर सकता इसलिए सरकार को चाहिए डिजिटल मीडिया के सभी प्रारूपों ई पेपर, ई पोर्टल के यू ट्यूब चैनल के छोटे पत्रकार या डिजिटल मीडिया समूह या चैनल जो भी सरकारी नियमों और मापदंडों में खरा साबित हो उनको नियमानुसार मान्यता दे पंजीकृत कर मान्यताप्राप्त पत्रकारों की तरह सशक्त बनाने का कार्य करे। यहां पर सरकार को चाहिए कि पत्रकारों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने की दिशा में निर्णायक कदम उठाते हुए छोटे बड़े सभी पत्रकार समूहों को बिना किसी भेदभाव के सरकारी विज्ञापनों द्वारा आर्थिक संबल दिया जा सकता है। अभी हाल में ही इस ओर उत्तरप्रदेश विधानसभा में बजट सत्र मैं विधान परिषद सदस्य आशुतोष सिन्हा द्वारा पत्रकारों के हितार्थ प्रस्ताव पेश किया गया है जिसमें पत्रकार सुरक्षा कानून, पत्रकारों को मासिक मानदेय, लागत मूल्य और रियायती दर पर आवास अथवा भूखंड देने की बात प्रस्ताव मैं कही गई है आशा है सरकार इस ओर संवेदनशीलता दिखाते हुए प्रस्तुत प्रस्ताव पर कदम उठाते हुए पत्रकारों का मनोबल बढ़ाने वाला उनको संजीवनी प्रदान करने वाले इस प्रस्ताव पर ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण निर्णय ले ताकि अन्य राज्य सरकारों को और केंद्र सरकार को इससे सीख लेते हुए इस दिशा में निर्णायक और आवश्यकता कदम उठाएं। दूसरी बात आजकल भारत में फर्जी बने पत्रकारों ने पत्रकारिता की गरिमा को कलंकित करने का कार्य किया है गले में प्रैस कार्ड लटका हाथ में माइक पकड़ आज कल कोई भी पत्रकार बन पत्रकारिता की आड़ मैं ब्लैकमेलिंग कर पैसों की उगाही करने के अनैतिक कार्यों में लिप्त हो पत्रकारिता को कलंकित करने का कार्य कर रहे हैं और ऐसे सैंकड़ों की संख्या में बढ़ते जा रहे हैं यहां पर सरकार और मीडिया समूहों को पत्रकारिता की गरिमा को बचाने और ऐसे लोगों को दूर करने के लिए कड़े कदम उठाए जाने की आवश्यकता है यहां पर पत्रकारिता के लिए एक शैक्षिक योग्यता के साथ कार्य अनुभव और अनुभव प्रमाण पत्र को आधार बनाया जाना चाहिए ताकि पत्रकारिता को कलंकित होने से बचाया जा सके।
आशा है कि 21वी सदी के तीसरे दशक में भारतीय पत्रकारिता प्रिंट, इलेक्ट्रिक और डिजिटल मीडिया उन बुनियादी मूल्यों का और दृढता से पालन करेगी जिन्हें हम शास्वत मानवीय मूल्य कहते हैं। तभी लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को हम और भी मजबूत बना पाएंगे।
आलेख: राकेश वशिष्ठ
वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादकीय लेखक
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