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दलित वोटों के छिटकने के बाद 2024 के चुनाव में बीजेपी की स्थिति मुश्किल में, पार्टी को सुप्रीम कोर्ट के विवादास्पद फैसले पर त्वरित और स्पष्ट रुख अपनाने की जरूरत

नई दिल्ली। 2024 के लोकसभा चुनावों में दलित वोटों के छिटकने के बाद बीजेपी के लिए स्थिति अत्यंत जटिल हो गई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दलित सब कोटे से संबंधित हालिया फैसले ने बीजेपी को एक कठिन स्थिति में डाल दिया है। इस फैसले पर विरोध बढ़ता जा रहा है, और बीजेपी को इस मुद्दे को लेकर अपनी रणनीति स्पष्ट करने की आवश्यकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल के दो सहयोगी, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के चिराग पासवान और महाराष्ट्र में दलित राजनीति करने वाले रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई) के प्रमुख रामदास अठावले, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से असंतुष्ट हैं। दोनों मंत्री इसे दलितों को बांटने और आरक्षण को खत्म करने की साजिश मानते हैं। वहीं एनडीए के सहयोगी दलों में अधिकांश ने इस फैसले का समर्थन किया है। तेलुगुदेशम पार्टी इस फैसले के समर्थकों में सबसे ऊपर है। बिहार में, हम पार्टी के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने इस फैसले पर अभी तक कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है, लेकिन अनुमान है कि वे इस फैसले से सहमत हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लंबे समय से दलित आरक्षण के सब कोटे के समर्थक रहे हैं और महादलितों को अलग आरक्षण देने का प्रस्ताव भी उन्होंने ही पेश किया था। बीजेपी के सामने अब दोहरी चुनौती है उसे तय करना है कि वह इस फैसले का समर्थन करे या विरोध। जैसे-जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पार्टियों का रुख स्पष्ट होता जा रहा है, बीजेपी को जल्द ही अपना स्टैंड स्पष्ट करना होगा। यदि पार्टी इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख नहीं अपनाती है, तो इसका प्रभाव उसके वोटरों पर पड़ सकता है। एक ओर, दलित समुदाय को ऐसा लगेगा कि बीजेपी इस फैसले के पक्ष में है, जबकि दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की चुप्पी का लाभ उठाने से पार्टी वंचित हो सकती है।

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