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जयंती विशेष: मिसाइल मैन डॉ. कलाम- अखबार बेच पूरी की थी स्कूली पढ़ाई, जानें- राष्ट्रपति बनने तक का सफर

मिसाइल मैन डॉ. कलाम

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डॉ.आसिफ उमर

15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वर में एक मछुआरे परिवार में जन्में मिसाइल मैन के नाम से मशहूर देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को देश आज याद कर रहा है। इसे विश्व छात्र दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। ये उनके सम्मान में 2010 से पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है। हर किसी को सपने देखने की सीख देने वाले अब्दुल कलाम की 90वीं जयंती के विशेष अवसर पर देश उनको नमन कर रहा है। डॉ. कलाम पैसों की कमी के चलते स्कूल की पढ़ाई के लिए अखबार बांटकर पैसे जुटाए और अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की। उनका पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम था।

युवाओं के प्रेरणास्रोत डॉ. कलाम

एक ऐसी शख्सियत जो ‘जीने लायक धरती का निर्माण’ करना चाहते थे और दुनिया कहती थी कि वो मिसाइल बनाते थे लेकिन जब लोगों के बीच जाते थे तो सिर्फ पैगाम-ए-मोहब्बत के सिवा और कुछ नहीं देते थे। एक ऐसा शख्स जो राष्ट्रपति था लेकिन अपने व्यक्तित्व में इसे झलकने नहीं दिया। उन्होंने ‘आम लोगों का राष्ट्रपति’ बने रहना पसंद किया। युवाओं के बीच वो जब भी होते थे तब यही कहा करते थे कि ‘लोग हमें तभी याद रखेंगे जब हम आने वाली पीढ़ी को एक समृद्ध और सुरक्षित भारत दे पाएंगे। इस समृद्धि का स्रोत आर्थिक समृद्धि और सभ्य विरासत होगी।

सिद्धांतों पर कदम बढ़ाने वाले कलाम अपनी आखिरी सांस तक देश की सेवा की ही बात करते रहे और देश के युवाओं को रिसर्च और इनोवेशन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए स्कूलों, कॉलेजों और सेमिनारों के जरिए छात्रों के बीच जाते रहे। उनकी बस यही सोच थी कि किसी भी तरह युवा पीढ़ी को समृद्ध किया जाए इसलिए वो आज भी युवाओं के प्रेरणास्रोत कहे जाते हैं और हमेशा कहे जाएंगे।

सड़क से संसद तक का सफर

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बहुत ही कठिन परिस्थितियों में पूरी की और अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए देश के सफल वैज्ञानिक बने। उन्होंने कई वर्षों तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन और इसरो को सेवाएं दीं और उन्हें मिसाइल मैन के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने भारत के लिए स्वदेशी गाइडेड मिसाइल डिजाइन की और अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें भारतीय तकनीक से बनाईं।

भारत के रत्न अब्दुल कलाम

डॉ. कलाम 1992 से 1999 तक रक्षा मंत्री के रक्षा सलाहकार भी रहे। इस दौरान वाजपेयी सरकार ने पोखरण में दूसरी बार न्यूक्लियर टेस्ट भी किए और भारत परमाणु हथियार बनाने वाले देशों में शामिल हो गया जिसमें डॉ. कलाम ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। डॉ. कलाम ने रक्षा के क्षेत्र में भारत को एक मुकाम हासिल कराया उनके इस योगदान के लिए 1981 में भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म भूषण और फिर 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में भारत रत्न प्रदान किया।

वाजपेयी ने बनाया देश का राष्ट्रपति

10 जून, 2002 को एपीजे अब्दुल कलाम को अन्ना विश्वविद्यालय के कुलपति डाक्टर कलानिधि का संदेश मिला कि प्रधानमंत्री कार्यालय उनसे संपर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहा है. इसलिए आप जल्द से जल्द कुलपति के दफ़्तर चले आइए ताकि प्रधानमंत्री से आपकी बात हो सके। जैसे ही उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय से कनेक्ट किया गया, वाजपेयी जी फ़ोन पर आए और बोले, कलाम साहब देश को राष्ट्पति के रूप में आप की ज़रूरत है। सभी पार्टियों के समर्थन से कलाम साहब देश के 11वें राष्ट्रपति बन गए। कलाम साहब देश के पहले और इकलौते गैर राजनीतिक राष्ट्रपति थे इसलिए उन्हें जनता का भरपूर प्यार मिला। कलाम साहब की सादगी के किस्से काफी चर्चित रहे और वो डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के बाद दूसरे लोकप्रिय राष्ट्रपति माने जाने लगे।

फाइटर प्लेन में बैठने वाले देश के पहले राष्ट्रपति

कलाम साहब का फाइटर पायलट बनने का सपना था लेकिन उनका यह सपना पूरा न हो सका लेकिन साल 2006 में एक ऐसा मौका भी आया जब उन्होंने देश के सबसे एडवांस फाइटर प्लेन सुखोई-30 में बतौर को-पायलट 30 मिनट की उड़ान भरी और वे फाइटर प्लेन में बैठने वाले देश के पहले राष्ट्रपति बने।

राष्ट्रपति होते हुए भी परिवार का खर्च खुद उठाया

डॉ. अब्दुल कलाम धर्म से मुस्लिम थे लेकिन वो कुरान और भागवत गीता दोनों ही पढ़ा करते थे। राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान कलाम के परिवार और रिश्तेदारी के लोग उनसे मिलने आये उनके परिवार के सदस्य कुल 8 दिनों तक राष्ट्रपति भवन में रहे लेकिन कलाम ने उनके रहने, खाने, घूमने का एक-एक रुपया अपनी जेब से चुकाया। डॉ. कलाम ने अपनी पूरी प्रोफेशनल जिंदगी में केवल 2 छुट्टियां ही ली थीं। एक अपने पिता की मौत के समय और दूसरी अपनी मां की मौत के समय।

युवाओं के बीच ली अंतिम सांस

डॉ. कलाम शिलांग में जब छात्र-छात्राओं के बीच मंच से भाषण देने पहुंचे तो शायद ही किसी को अंदाजा होगा कि यो उनका आखिरी संबोधन होगा। उन्होंने अपने आखिरी संबोधन में कहा कि आसमान की ओर देखिए। हम अकेले नहीं हैं। ब्रह्मांड हमारा दोस्त है। 27 जुलाई 2015 को शिलांग में छात्रों को संबोधित करने के दौरान ही दिल का दौरा पड़ने के कारण उनका निधन हो गया। 83 साल के अपने जीवन में कलाम साहब ने कई अहम योगदान दिए। देशवासियों के दिल में उनकी यादें हमेशा बसी रहेंगी।

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