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कोविड की 8 दर्दनाक कहानी, महंगाई के डबल अटैक से तबाह हुए करोड़ो परिवार

“कोविड-19 से हर तबका प्रभावित, कोई बिजनेस बेचने तो कोई मेड का काम करने को मजबूर, लेकिन अमीरों की अमीरी भी बढ़ी”

अभी एक ही दशक हुआ जब भारतीयों ने अपने खर्च के तौर-तरीके और जीवन शैली में बदलाव लाना शुरू किया था। वे बचत की परंपरागत सोच की जगह खर्च करने पर ज्यादा जोर दे रहे थे। भारतीयों की सोच में आए इस बदलाव पर पश्चिमी देशों का स्पष्ट प्रभाव था। भारतीय स्मार्टफोन, हवाई यात्रा, एयर कंडीशनर, रेस्तरां में खाना-पीना जैसे भौतिकतावादी जीवन की आदत डाल रहे थे। लेकिन लगता है कोविड-19 महामारी ने उनकी इस उड़ान पर ब्रेक लगा दिया है। महामारी ने भारतीयों को दो वर्गों में बांट दिया है। एक वर्ग वह है जो महामारी की चुनौतियों के बावजूद अमीर बना रहा। दूसरा वह वर्ग है जिसे महामारी ने गरीबी में धकेल दिया। अमीरों में ई-कॉमर्स, अस्पताल, फॉर्मास्युटिकल आदि सेक्टर के लोग हैं जिन्होंने संकट की इस घड़ी का पूरा फायदा उठाया। गरीब वर्ग में वे हैं जिनके वेतन में कटौती हुई, नौकरियां गईं, ऐसे परिवार जिनके कमाने वाले सदस्य कोविड-19 के शिकार हो गए। वे लोग भी, इलाज के खर्च में जिनके पूरे जीवन की कमाई डूब गई।

शुरुआत एमएसएमई सेक्टर से करते हैं जो सबसे ज्यादा संकट में था। इसने अपना सब कुछ गंवा दिया है और उसे वापस पाने का कोई साधन नहीं दिख रहा है। लोकल सर्किल के एक सर्वेक्षण के अनुसार केवल 22 फीसदी छोटे कारोबारियों के पास तीन महीने से अधिक का पैसा बचा है। 41 फीसदी ऐसे हैं जिनके पास बिजनेस के लिए या तो पैसा ही नहीं बचा है या वे एक महीने तक ही जैसे-तैसे अपनी गाड़ी खींच सकते हैं।

ऑटो कंपोनेंट का बिजनेस करने वाले अंकित मिश्रा कहते हैं, ”मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का बुरा हाल है। मैंने अपना बिजनेस जारी रखने के लिए कर्मचारियों की संख्या 15 से घटाकर आठ कर दी है, लेकिन नए ऑर्डर नहीं आ रहे हैं। कर्ज पर काम करने वाला बाजार पूरी तरह चरमरा गया है। बिना भुगतान किए कच्चा मिल नहीं रहा है। हम अपने खर्चे घटाने को मजबूर हैं। जून में बेटी के पहले जन्मदिन की पार्टी नहीं की और नई कार खरीदने की योजना को भी टाल दिया है। संकट की इस स्थिति में वेतनभोगियों को तो एक निश्चित तनख्वाह मिल जाती है, लेकिन छोटे कारोबारियों के लिए सब अनिश्चित है।”

अंकित की ही तरह 49 फीसदी छोटे कारोबारी जुलाई तक अपने कर्मचारियों के वेतन और दूसरे लाभ में कटौती करने की सोच रहे हैं। 59 फीसदी कारोबारी तो बिजनेस ही छोटा करने या फिर उसे बेचने या बंद करना बेहतर समझते हैं। सोशल मीडिया वेबसाइट लिंक्डइन पर ऐसे बहुत से कारोबारी मिल जाएंगे, जिनका दशकों पुराना बिजनेस बर्बाद हो गया है और वे एक अदद नौकरी की तलाश में हैं।

रत्नेश ठाकुर इसका उदाहरण हैं। लिंक्डइन पर ठाकुर की पोस्ट से उनकी बेबसी साफ झलकती है। वे लिखते हैं, “पहले लॉकडाउन में मेरा 25 साल का बिजनेस तबाह हो गया और दूसरे लॉकडाउन में पत्नी को खो चुका हूं। वह केवल 47 साल की थी॒। एक साल से मैं उधार के सहारे परिवार का भरण-पोषण कर रहा हूं। मैं हाथ जोड़कर आप सबसे प्रार्थना करता रहा हूं कि मेरी मदद करिए ताकि दो बच्चों और बूढ़ी मां की थाली में खाने का इंतजाम कर सकूं। मैं कोई भी काम करने को तैयार हूं।”

इस तरह के लाचारी भरे संदेशों से लिंक्डइन भरा पड़ा है। लोकल सर्किल के संस्थापक और चेयरमैन सचिन तपरिया कहते हैं, “हमारे सर्वेक्षण के अनुसार अगले छह महीने में केवल 22 फीसदी छोटे कारोबारियों को अपने बिजनेस में ग्रोथ दिख रही है। हमने वित्त मंत्रालय को सुझाव दिया है कि लॉकडाउन में श्रमिकों और अन्य दिक्कतों को देखते हुए सरकारी कंपनियों और विभागों के साथ काम करने वाली एमएसएमई पर पेनाल्टी के प्रावधान को तीन से छह महीने तक टाल देना चाहिए।” स्टील, तांबा जैसी कमोडिटी के दाम छह महीने में 50 फीसदी बढ़े हैं, जिसे देखते हुए सरकारी कंपनियों के साथ अनुबंधों को संशोधित करते हुए नए सिरे से कीमतें तय की जानी चाहिए।

ऐसा नहीं कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ही खून के आंसू रो रहा है, खुदरा विक्रेताओं को भी खास उम्मीद नहीं है, क्योंकि लोग खर्चे घटा रहे हैं। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक बड़ी इलेक्ट्रॉनिक रिटेल चेन के वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ”हम हर तरफ से पिट रहे हैं। ई-कॉमर्स सेक्टर के साथ हम कीमतों की लड़ाई नहीं लड़ सकते, क्योंकि हमारे पास उतना कैश नहीं है। न ही नए उत्पाद खरीदने के लिए ज्यादा क्रेडिट की गुंजाइश है।” उन्होंने बताया कि कई बड़े ब्रांडों ने इस साल नए उत्पाद लॉन्च न करने का फैसला किया है। वेतन और अन्य लाभों में कटौती के बावजूद कर्मचारियों की संख्या 15-20 फीसदी तक घटानी पड़ी। फरवरी-मार्च से वेतन कटौती वापस लेने के संकेत दिखने लगे थे। कई बड़ी कंपनियां न केवल पुराने वेतन स्तर पर लौट आईं, बल्कि वेतन बढ़ाना भी शुरू कर दिया था। लेकिन दूसरी लहर ने फिर इन पर पानी फेर दिया।

इंटरसिटी रेलयात्री स्टार्टअप के सह-संस्थापक और सीईओ मनीष राठी ने बताया कि उनकी कंपनी में सबके वेतन में कटौती करनी पड़ी। हालांकि अब ज्यादातर कर्मचारियों का वेतन बहाल कर दिया गया है, लेकिन मनीष सहित प्रबंधन के कुछ लोगों ने एक साल से अधिक समय से अपने वेतन में कटौती को जारी रखा है। मनीष की पत्नी ने कहा, “सौभाग्य से हमारे पास संकट से निपटने के लिए पर्याप्त पैसे थे। हमने पिछले साल दो बड़ी योजनाएं बनाई थीं। पहला, मनीष के 50वें जन्मदिन की पार्टी बड़े स्तर पर करना और दूसरा, यूरोप की यात्रा। लेकिन सब टालना पड़ गया। अब हम सबसे पहले स्थिति सामान्य होने का इंतजार कर रहे हैं।”

सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआइई) के एमडी एवं सीईओ महेश व्यास कहते हैं, “रोजगार संख्या अप्रैल 2021 के 39.08 करोड़ से गिरकर मई में 37.55 करोड़ रह गई। इसमें जनवरी 2021 के मुकाबले 2.53 करोड़ की कमी आई थी।” महेश के इस आकलन में वे लोग शामिल नहीं जिनकी कमाई घट गई है। इस वर्ग में घरों में काम करने वाली मेड, ड्राइवर, कार क्लीनर, प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन जैसे कम आय वाले शामिल हैं।

ब्यूटी पार्लर में काम करने वाली पूजा ने अब मेड का काम करना शुरू कर दिया क्योंकि उनका पार्लर बंद हो गया और वेतन भी कम हो गया था। लेकिन यहां भी उनकी परेशानी कम नहीं हुई। वे बताती हैं, “मैंने तीन घरों में काम शुरू किया, लेकिन कोविड-19 के मामले बढ़ने लगे तो दो घरों में काम बंद हो गया। कुछ खर्चे नियमित होते हैं और उन्हें रोका नहीं जा सकता। इस बीच मेरी मां के गॉल ब्लैडर में पथरी हो गई और डॉक्टरों ने ऑपरेशन के लिए एक लाख रुपये का खर्च बताया। हमारे पास कोई विकल्प नहीं था, तो मां दर्द की गोलियों के सहारे बीमारी को झेल रही हैं।”

महामारी से आर्थिक विकास भी प्रभावित है। 2020-21 की अंतिम तिमाही में भारत की जीडीपी 1.6% बढ़ी है, लेकिन पूरे वर्ष में यह 7.6% गिर गई। यह चार दशकों में सबसे बड़ी गिरावट है। आरबीआई ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए भी भारत के विकास अनुमान को कम किया है। विश्व बैंक ने इसे 8 जून को घटाकर 8.3% कर दिया था। विशेष रूप से तीसरी लहर के दो महीने के भीतर आने की आशंका को देखते हुए रिकवरी के संकेत कम हैं। यानी इन दो महीने में बड़े रिवाइवल की कोई संभावना नहीं है। ऐसे में अनेक परिवार पुरानी बचत के सहारे हैं।

केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस कहते हैं, “बचत अलग-अलग तरीके से प्रभावित हो रही है। परिवारों ने पिछले कुछ महीने स्वास्थ्य पर अधिक और गैर जरूरी वस्तुओं पर कम खर्च किया है।” सबनवीस के अनुसार खर्च के साधन बंद होने के कारण बचत करने के अलावा कोई चारा नहीं है। यह बचत नकद के साथ वित्तीय साधनों के रूप में भी हो रही है। ज्यादा महंगाई और बैंक जमा पर कम रिटर्न के कारण लोग स्टॉक और म्यूचुअल फंड में निवेश बढ़ा रहे हैं। इसी वजह से निफ्टी और सेंसेक्स लगातार रिकॉर्ड बना रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि कितने लोग इसका लाभ उठा रहे हैं?

नाइट फ्रैंक इंडिया के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक शिशिर बैजल के अनुसार, “वैश्विक बाजार में अनिश्चितता के बावजूद 2020 में भारत के 60 फीसदी बड़े अमीरों की संपत्ति बढ़ गई। 2021 में 91 फीसदी बड़े अमीरों को अपनी संपत्ति बढ़ने की उम्मीद है। नाइट फ्रैंक का आकलन है कि 2020 से 2025 के बीच दुनिया में बड़े अमीरों की संख्या 39 फीसदी बढ़ जाएगी। इंडोनेशिया में 67 फीसदी और भारत में 63 फीसदी की सबसे ज्यादा बढ़ोतरी होगी। भले ही इंडोनेशिया की दर सबसे ज्यादा हो, भारत के बड़े अमीरों की संख्या उसके मुकाबले 10 गुना ज्यादा होगी।

नाइट फ्रैंक ने अपनी ‘वेल्थ रिपोर्ट 2021’ में बताया है कि भारत में तीन करोड़ डॉलर या उससे अधिक संपत्ति वाले बड़े अमीरों की संख्या 2025 तक 11,198 हो जाने की उम्मीद है। अभी भारत में ऐसे 6,884 सुपर रिच और 113 अरबपति हैं। भारत में अरबपतियों की संख्या 2025 तक 43 फीसदी बढ़कर 162 हो जाने की उम्मीद है। इस दौरान दुनिया में अरबपतियों की संख्या 24 फीसदी और एशिया में 38 फीसदी बढ़ेगी। यानी भारत की रफ्तार इनसे अधिक होगी। रिपोर्ट के अनुसार अभी भारत के सबसे धनी एक फीसदी लोगों में शामिल होने के लिए 60,000 डॉलर की जरूरत पड़ती है। अगले पांच वर्षों में यह सीमा दोगुनी हो जाएगी।

हुरुन इंडिया के संस्थापक और वेंचर कैपिटलिस्ट अनस रहमान जुनैद इस बात से सहमत हैं कि महामारी ने भारत में आर्थिक विभाजन को और गहरा कर दिया है। फार्मास्युटिकल्स, आइटी, हेल्थकेयर और एफएमसीजी जैसे क्षेत्रों में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई, जबकि यात्रा और पर्यटन, रेस्तरां, कपड़ा, ऑटो जैसे क्षेत्र सुस्ती के शिकार हैं। उनका दावा है कि सुस्ती समाप्त हो जाने के बाद, इन क्षेत्रों में विकास की गति तेज होगी क्योंकि ग्रोथ में लोगों की ललक एक प्रमुख भूमिका निभाएगी। जुनैद खुद को भाग्यशाली मानते हैं क्योंकि महामारी के दौरान उनके सभी निवेश संपत्ति बढ़ाने वाले साबित हुए।

‘हुरुन ग्लोबल रिच लिस्ट 2021’ में 2,402 कंपनियों और 68 देशों के 3,228 अरबपतियों को स्थान मिला है। इन अरबपतियों में से 2,312 की संपत्ति इस दौरान बढ़ी है। इनके अलावा 620 नए चेहरे हैं, जबकि 635 की संपत्ति में कमी आई और 194 सूची से बाहर हो गए। इस दौरान 32 अरबपतियों की मौत भी हो गई। 282 अरबपतियों की संपत्ति स्थिर रही। इस सूची में अरबपतियों की औसत उम्र 65 वर्ष है।

भारत 177 अरबपतियों के साथ विश्व रैंकिंग में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। पिछले साल की तुलना में अरबपतियों की संख्या 40 बढ़ गई है। लॉकडाउन, मृत्यु और निराशा के बीच यह नई हकीकत है। 83 अरब अमेरिकी डॉलर की संपत्ति के साथ रिलायंस के मुकेश अंबानी भारत के सबसे अमीर व्यक्ति हैं। सबसे ज्यादा 37 अमीर हेल्थकेयर, 26 अमीर कंज्यूमर गुड्स और 19 अमीर केमिकल्स सेक्टर के हैं। मुंबई अब तक 61 लोगों के साथ अरबपतियों की राजधानी है, इसके बाद दिल्ली है जहां 40 अरबपति हैं। सूची में शामिल 150 अरबपतियों की संपत्ति बढ़ी है, इनमें 50 नए चेहरे हैं। 16 की संपत्ति कम हुई तो 10 सूची से बाहर हो गए हैं। 12 की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। हुरुन के अनुसार महामारी के दौरान गौतम अदाणी और उनके परिवार की संपत्ति में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। उनकी संपत्ति लगभग दोगुनी, 32 अरब डॉलर हो गई। इस सूची में एक और अहम नाम शिव नादर और उनका परिवार है जिनकी संपत्ति 10 अरब डॉलर बढ़कर 27 अरब डॉलर हो गई। वहीं एन.आर. नारायणमूर्ति की संपत्ति 35 फीसदी बढ़कर 3.1 अरब अमेरिकी डॉलर हो गई।

एक और बड़ा आश्चर्य हीरो साइकिल्स वाले पंकज मुंजाल और उनके परिवार की इस सूची में पहली बार एंट्री है। भारत में ई-बाइक की बढ़ती मांग के कारण उनकी संपत्ति बढ़कर 1.2 अरब डॉलर हो गई है। सूची में शामिल अन्य भारतीयों में डिवीज लैबोरेटरीज के मुरली दिवि और उनका परिवार है। उनकी संपत्ति 72 फीसदी बढ़कर 7.4 अरब डॉलर हो गई। कुमार मंगलम बिड़ला परिवार की संपत्ति 61 फीसदी बढ़कर 9.2 अरब डॉलर हो गई है।

महामारी की वजह से प्रभावित होने वाले अमीरों में ओयो रूम होटल चेन के संस्थापक रितेश अग्रवाल भी हैं। वे अरबपतियों की इस सूची से बाहर हो गए हैं। इसी तरह 2018 में सबसे अधिक संपत्ति अर्जित करने वाले फ्यूचर ग्रुप के किशोर बियानी ने भी अरबपति का तमगा खो दिया है। दूसरी तरफ, महामारी की वजह से गरीबों का एक नया वर्ग सामने आ रहा है। ये वे लोग हैं जो अस्पतालों का बिल भरने की वजह से गरीब हो गए हैं। वित्त आयोग का अनुमान है कि कमाई का 70 फीसदी स्वास्थ्य पर खर्च होने के कारण हर साल लगभग छह करोड़ भारतीय गरीब हो जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि महामारी के कारण यह संख्या और अधिक बढ़ेगी, हालांकि इस समय संख्या का पता लगाना बहुत मुश्किल है।

‘मिलाप’ और ‘केटो’ जैसी क्राउडफंडिंग वेबसाइट पर लोगों की बेचारगी हर रोज दिख रही है। वे प्रियजनों को बचाने के लिए लोगों से पैसे मांग रहे हैं, क्योंकि उनकी सारी जमा पूंजी खत्म हो चुकी है। ऐसा ही एक अनुरोध 33 साल के अमूल्य के लिए है जो लंबे समय से जरूरतमंदों के लिए रक्तदान करते रहे हैं। 2016 में उनकी शादी हुई थी। कंप्यूटर हार्डवेयर की दुकान के जरिए वे पत्नी और तीन साल की बेटी का भरण-पोषण कर रहे थे। कोविड-19 से पीड़ित होने के बाद 31 मई 2021 से भुवनेश्वर के कलिंग अस्पताल में जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनके इलाज के लिए तत्काल एक करोड़ रुपये की जरूरत थी, लेकिन कई दिनों के प्रयास के बावजूद उनका परिवार 1.5 लाख रुपये ही जुटा पाया। स्वास्थ्य बीमा होने के बावजूद इस तरह इलाज का खर्च लोगों को गरीब बना रहा है।

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जयराज भट्टाचार्य, थिएटर और फिल्म कलाकार, कोलकाता

पिछले साल पहली बार लॉकडाउन लगने के बाद अप्रैल से ही जयराज हावड़ा जिले के शिवपुर में प्रियनाथ मान्ना बस्ती कम्युनिटी किचन चला रहे हैं। शुरुआत में गरीबों को मुफ्त में खाना दिया गया। अनलॉक शुरू हुआ तो रोजाना 400 लोगों को 20 रुपये में खाना दिया जाने लगा। अनिर्बाण भट्टाचार्य और रितिब्रतो मुखर्जी जैसे कलाकारों की मदद से जयराज ऑनलाइन कंसर्ट आयोजित करके फंड जुटाते हैं। पिछला कॉन्सर्ट 23 मई को आयोजित किया गया था। 11 जून को इस कैंटीन के 300 दिन पूरे हो गए। इसे चलाने में जयराज को न सिर्फ ऊर्जा लगानी पड़ती है, बल्कि उनके काफी पैसे भी खर्च हुए हैं।

वे बताते हैं, “पहले लॉकडाउन के बाद मार्च-अप्रैल 2020 से मुझे कोई काम नहीं मिला। बचत के पैसे से गुजारा कर रहा हूं, जो हर दिन कम होती जा रही है। लेकिन मैं अपने बारे में कम, इस सीजन में थिएटर के पेशे को जो नुकसान पहुंचा है, उसके बारे में अधिक बात करना चाहूंगा।” वे कहते हैं, “मैं नहीं जानता कि अगर यही स्थिति और कुछ महीने रही तो मुझे क्या करना पड़ेगा। हां आज मुझे मालूम है कि कल भूखा नहीं रहूंगा। लेकिन इस पेशे से जुड़े अनेक अभिनेता, टेक्नीशियन और दूसरे प्रोफेशनल हैं जिनके पास इतने पैसे नहीं कि वे इंतजार करते हुए भी आराम से जीवन गुजार सकें। अनेक अभिनेता, लाइट, साउंड और सेट डिजाइन से जुड़े अनेक अच्छे टेक्नीशियन अब दूसरे पेशे में चले गए हैं।” आगे चलकर अगर वे इस काम मैं नहीं लौटे तो वह पूरे सेक्टर के लिए बड़ा नुकसान होगा।

जयराज थिएटर फॉरमेशन परिवर्तक ग्रुप के साथ जुड़े हैं। कोविड-19 की दूसरी लहर में इस थियेटर ग्रुप का अनुभव बहुत बुरा रहा। पिछले साल के अंत में जब कोरोना का प्रकोप कम होने लगा तो ग्रुप ने अपने लोकप्रिय प्रोडक्शन तितुमीर का प्रदर्शन करने का फैसला किया। कोलकाता के अकादमी ऑफ फाइन आर्ट्स में 7 मार्च से इसकी शुरुआत की गई, लेकिन महीने का अंत आते-आते कोलकाता और प्रदेश के दूसरे जिलों में कोविड-19 पॉजिटिव के मामले बढ़ने लगे। जल्दी ही हालात ऐसे हो गए कि शो जारी रखना मुमकिन नहीं रह गया। जयराज कहते हैं, “जब भी कुछ अंतराल के बाद प्रोडक्शन शुरू होता है तो अतिरिक्त खर्च होते हैं। ऐसे में यह जाने बिना कि आगे हालात कैसे रहेंगे, शो फिर से आयोजित करना नुकसानदायक हो सकता है।”

(स्निग्धेंदु भट्टाचार्य)

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अनुराग कटरियार, प्रेसिडेंट, नेशनल रेस्तरां एसोसिएशन ऑफ इंडिया, संस्थापक और एमडी, इंडिगो हॉस्पिटैलिटी प्रा.लि. मुंबई

‘एके’ नाम से मशहूर अनुराग इंडिगो हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक और एमडी हैं, लेकिन इन दिनों घर पर शेफ की भूमिका निभाते हैं। बिजनेस बंद होने, कर्मचारियों की संख्या घटाने और संसाधनों की कमी के चलते वे घर पर ही रहने को मजबूर हैं। वे कहते हैं, घर का माहौल बेहतर बनाए रखने के लिए कभी-कभी बेटे से कहता हूं कि आज हम ग्रिल्ड चिकन बनाएंगे। इससे बच्चों को भी अच्छा लगता है, क्योंकि घर में रहकर वे भी काफी बोरियत महसूस करते हैं। एक साल से अधिक समय से कोई कमाई न होने पर जीवन शैली किस तरह बदली है, यह पूछने पर वे बताते हैं, “हम बाहर से खाना बिल्कुल नहीं मंगाते। कोई शॉपिंग या कहीं घूमना नहीं हो रहा है। मैं जानता था कि मुझे अपने व्यक्तिगत खर्चे घटाने पड़ेंगे, लेकिन साथ ही यह भी चाहता था कि मेरे परिवार को बुनियादी जीवन शैली में किसी तरह की कटौती न करनी पड़े।” कटरियार कर्ज लेने के खिलाफ हैं। कहते हैं, “मुझे अपने लिए अलग कार खरीदनी थी, लेकिन फिलहाल मैंने उसे मुल्तवी कर दिया। मुझे लगा कि जब हम कहीं बाहर जा ही नहीं रहे तो अभी कार खरीदने का क्या मतलब है। बारिश के पानी में डूब जाने के कारण हमारी फैमिली कार खराब हो गई, इसलिए हम दूसरी कार खरीदने की सोच रहे थे।”

कटरियार के अनुसार महामारी के दौर में रेस्तरां वास्तव में डिलीवरी और क्लाउड किचन बनकर रह गए हैं। इसमें मार्जिन बहुत कम है। सिर्फ ब्रांड को बचाए रखने की कोशिश की जा रही है। पहले लॉकडाउन से लेकर अब तक अनेक कर्मचारियों को विदा करना पड़ा। अभी जो कर्मचारी हैं उन्हें पैसे दे रहा हूं। शेफ को पूरा वेतन मिल रहा है लेकिन कॉरपोरेट ऑफिस के कर्मचारी घर से काम कर रहे हैं और उन्हें वेतन का एक हिस्सा ही मिल रहा है।

(लक्ष्मी देबराय)

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मोहम्मद परवेज, वेल्डिंग दुकान चलाने वाले, मुरादाबाद

परवेज मुरादाबाद में अपने घर पर ही पीतल वेल्डिंग की वर्कशॉप चलाते हैं। सवा साल पहले सामान्य दिनों में चार लोगों को काम पर रखते थे और रोजाना पांच सौ रुपये कमा लेते थे। अब मुश्किल से तीन सौ कमा पाते हैं, वह भी जब ऑर्डर मिले जो इन दिनों मिल नहीं रहे। ज्यादातर दिन परवेज और उनके कर्मचारियों में से कोई एक ही काम करता है, ताकि हर एक को परिवार चलाने के लिए कुछ कमाई हो सके। उनके पिता ढाबा चलाते हैं, जिसकी कमाई आधी यानी पांच हजार रुपये महीना रह गई है। कमाई घटी तो परवेज को दोस्तों और रिश्तेदारों से उधार लेना पड़ा। इस बार ईद भी खराब गुजरी क्योंकि नए कपड़े खरीदने लायक पैसे ही नहीं थे।

आम तौर पर ईद से पहले बड़े बिजनेस पुराने ऑर्डर पूरे कर देते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि कर्मचारी छुट्टी पर चले जाएंगे। इससे सहायक इकाइयों और परवेज जैसे सब-वेंडर को काफी काम मिल जाता है। लेकिन 2021 में ऐसा नहीं हुआ। साल की शुरुआत में हालात थोड़े बेहतर होने शुरू हुए, लेकिन अप्रैल में कोरोना की दूसरी लहर के चलते कारोबार फिर नीचे आने लगा। सभी सेक्टर में हालत खराब होने के कारण भुगतान मिलने में देरी होने लगी। वे बताते हैं, “पूरी प्रक्रिया एक दूसरे से जुड़ी है। हमें काम देने वाली इकाइयों को भुगतान में देरी का मतलब है कि हमें भी एक हफ्ते या ज्यादा समय तक इंतजार करना पड़ेगा।” इसके अलावा इस साल मार्च से अब तक पीतल की कीमत भी 100 रुपये प्रति किलो बढ़ गई है।

(लोला नायर)

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बिलाल अहमद पथू, हाउसबोट मालिक, कश्मीर

इनका परिवार बीते 100 वर्षों से हाउसबोट बिजनेस में है, लेकिन यंग हॉलीवुड हाउसबोट के मालिक बिलाल को लगता है कि बीते तीन साल कई पीढ़ियों में सबसे मुश्किल भरे रहे हैं। अनुच्छेद 370 बेमानी किए जाने, पर्यटकों के न आने और फिर महामारी के चलते लॉकडाउन। बिलाल ने बीते दो वर्षों में ज्यादातर समय गोल्डन लेक एरिया में अपने हाउसबोट के डेक पर बैठकर ही बिताए हैं। वे कहते हैं, “कोई काम नहीं है। बढ़ती गरीबी के चलते हताश हो रहे हैं लेकिन कोई इस बारे में बात नहीं कर सकता है।”

हाउसबोट मालिकों और शिकारावालों के अनेक परिजन दूसरे देशों में बस गए हैं। बिलाल के अनुसार वे स्वयं सहायता समूहों की मदद कर रहे हैं। ये समूह में खाने पीने का सामान और दूसरी चीजें उपलब्ध कराते हैं। कश्मीर में कहावत है कि घाटी में कोई भूख से नहीं मरता। मौजूदा संकट में भी यह बात सही जान पड़ती है, लेकिन दूसरी बड़ी समस्याएं हैं। हाउसबोट और शिकारा के मरम्मत और रखरखाव की जरूरत पड़ती है। बिजली विभाग ने हर एक के लिए दो लाख रुपये का बिल भेजा है। बिलाल कहते हैं, “सरकार ने तो छूट देने का वादा किया था, लेकिन वह हमसे पैसे मांग रही है जबकि हमारे पास खाने के पैसे नहीं हैं।”

परिवार का खर्च चलाने और परिचितों का कर्ज उतारने के लिए बिलाल ने बैंक से कर्ज लिया है। अपने कर्मचारियों को लेकर भी वे बहुत निराश हैं। उन्होंने छह से आठ हजार रुपये माहवार पर आठ लोगों को रखा था। वे कहते हैं, “वे हमारे परिवार की तरह थे, लेकिन मुझे उनसे जाने के लिए कहना पड़ा। मैं सबको नौकरी पर नहीं रख सकता था।” बिलाल को लगता है कि उनके भतीजे और दूसरे युवा मेहनत से पढ़ाई करेंगे और इस जगह से बाहर निकलेंगे। वे नहीं चाहते कि ये युवा डूबती नाव और हाउसबोट का हिस्सा बनें। कई शिकारावालों ने नाव बेचकर फल-सब्जी का धंधा शुरू कर दिया है। जो बाकी बचे हैं, उन्हें लगता है कि बड़ा डिस्काउंट देने पर शायद एक बार फिर पर्यटक घाटी में आएं।

(नसीर गनई)

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अक्षिता अरोड़ा, अभिनेत्री, मुंबई

कई टेलीविजन शो के अलावा अक्षिता ने 60-65 हिंदी और दूसरी भाषा की फिल्मों में काम किया है। पिछले साल मार्च में जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तब वे टीवी सीरियल बैरिस्टर बाबू के लिए काम कर रही थीं। महामारी को देखते हुए निर्माताओं ने उम्र दराज कलाकारों को शूटिंग में न बुलाने का फैसला किया। उन्हें कई महीने तक बिना काम के घर बैठना पड़ा। वे बताती हैं, “इस दौरान मेरे दो बेटों, एक असिस्टेंट डायरेक्टर और एक शेफ, तथा बेटी के पास भी कोई काम नहीं था। हम सबके लिए वह बड़ा मुश्किल वक्त था और अभी तक हम उससे उबर नहीं पाए हैं। सलमान खान और अक्षय कुमार जैसे अभिनेताओं ने एक-दो बार हम जैसे लोगों की मदद के लिए दो-तीन हजार रुपये दिए, लेकिन इतनी रकम से कितने दिन गुजारा हो सकता है। महामारी के दौरान महंगाई तेजी से बढ़ने के कारण हमारी समस्याएं दोहरी हो गईं।”

घर चलाने के लिए उन्हें ज्वैलरी तक बेचनी पड़ी। अब वे गले तक कर्ज में डूबी हैं। महामारी से पहले दोस्त और दूसरे सहकर्मी एक-दूसरे की मदद किया करते थे, लेकिन भविष्य अनिश्चित देखकर हर कोई अपने बारे में सोचने लगा है। वे कहती हैं, “उन्हें दोष नहीं देना चाहिए। लोग आमतौर पर सोचते हैं कि तकनीशियनों की तुलना में अभिनेता बहुत कमाते हैं, लेकिन हम ही जानते हैं कि लॉकडाउन के दौरान हमने कैसे गुजारा किया।”

बड़े कलाकारों को तो बड़ी रकम मिलती है, लेकिन चरित्र अभिनेताओं को एक दिन में 12 घंटे की शिफ्ट के बदले दो से पांच हजार रुपये दिए जाते हैं। वे कहती हैं, किसी कलाकार को महीने में तीन-चार दिन का ही काम मिले तो वह अपना घर कैसे चलाएगा। कोई कलाकार बीमार पड़ जाए या दुर्घटनाग्रस्त हो जाए तो उसके लिए सिने एंड टीवी आर्टिस्ट एसोसिएशन (सिंटा) की एक बीमा पॉलिसी है, लेकिन महामारी जैसी परिस्थिति में उम्रदराज और रिटायर्ड कलाकारों के लिए कोई बीमा या पेंशन नहीं है। एसोसिएशन बकाया रिकवरी में भी मदद नहीं करती। उन्होंने बताया, “मैंने 2012-13 में एक सीरियल किया था। उसके निर्माताओं पर मेरे 2.5 लाख रुपये बकाया हैं। अगर मुझे वे पैसे मिल जाते तो हमारे दिन कुछ बेहतर बीतते।”

अक्षिता अकेली बच्चों की देखभाल करती हैं और किराए के घर में रहती हैं। उन्हें लगता है कि मुंबई में अगर अपना घर होता तो संकट कुछ कम होता। उन्होंने लंबे समय बाद अपना टाइम आएगा शो के लिए काम करना शुरू किया है।

(गिरिधर झा)

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एग्नेस लिंडो तालुकदार, ब्यूटी पार्लर बिजनेस, गुवाहाटी

पिछले एक साल से एग्नेस लिंडो तालुकदार को इस बात का अफसोस है कि महामारी के दौर में उन्हें गुवाहाटी के अपने ब्यूटी पार्लर से दो लोगों को नौकरी से हटाना पड़ा। उनका दावा है कि द एग्नेस ब्यूटी पार्लर उत्तर पूर्व का दूसरा सबसे पुराना पार्लर है, जिसकी शुरुआत 1986 में हुई थी। उन्होंने कहा, “दोनों काम में अच्छी थीं, फिर भी उन्हें हटाना पड़ा क्योंकि बिजनेस चलाना मुश्किल हो गया।” हालांकि अब भी पांच दूसरे लोग उनके पास नौकरी कर रहे हैं। कमाई कम हो जाने के कारण वे बैंक कर्ज की ईएमआइ नहीं चुका पा रही हैं। पिछले साल लॉकडाउन हटने के बाद भी, ब्यूटी पार्लर और जिम बहुत बाद में खोलने की अनुमति दी गई थी। वे बताती हैं, “जब हमने पार्लर फिर से खोले, तो शायद ही कभी ऐसा हुआ कि पार्लर में पूरा भरा हो क्योंकि लोग तब बहुत एहतियात बरत रहे थे। उनमें भी कुछ ऐसे थे जो नहीं चाहते थे कि जब वे पार्लर में हों, तो उनके आसपास कोई दूसरा ग्राहक हो क्योंकि वे डरे हुए थे। फेशियल और थ्रेडिंग जैसी सेवाएं लगभग बंद थीं क्योंकि इनके लिए ग्राहक के करीब जाना पड़ता है।” 

एग्नेस के पति जिम चलाते हैं, इसलिए परिवार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। उन्हें लगता है, “अगर परिवार में कोई वेतनभोगी होता तो हालात बेहतर होते, क्योंकि तब घर में एक निश्चित कमाई तो आती रहती। बढ़ती उम्र के कारण मैं भी दूसरे बिजनेस में जाने की नहीं सोच सकती। इसकी गारंटी भी नहीं कि नए बिजनेस की हालत भी ऐसी नहीं होगी।”

वे बताती हैं, “पिछले साल लॉकडाउन हटने के बाद पार्लर खोला तो कभी वह पूरा नहीं भरा। लोग डरे हुए थे। फेशियल और थ्रेडिंग तो कोई करवाता ही नहीं था, क्योंकि उसके लिए करीब रहना पड़ता है।” दूसरी लहर के बाद रोजाना कुछ घंटों के लिए ही पार्लर खोलने की अनुमति दी गई। वे बताती हैं, “एक या दो घंटे के लिए पार्लर खोलने का कोई मतलब नहीं, क्योंकि उतनी देर में कमाई नहीं होती। कर्मचारी दूर से आते हैं। दुकान बंद करने का समय होते ही कर्फ्यू शुरू हो जाता है और वे घर नहीं लौट सकते।” उम्मीद है कि पुराने दिन लौट आएंगे और वे अपने दोनों कर्मचारियों को फिर से रख सकेंगी।

(दीपांकर रॉय)

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आसिफ रहमान, सीईओ, इनसिन्यू कारपेट्स, गुड़गांव

आसिफ और उनके परिवार के दूसरे सदस्यों की तुलना में उनका बेटा मौजूदा संकट से ज्यादा प्रभावित हुआ है। वह फुटबॉल का खिलाड़ी है और एशिया कप में भारतीय टीम का कप्तान रह चुका है। आसिफ बताते हैं, “इन दिनों वह रोजाना सुबह पांच बजे मैदान में जाता है और अकेला खेलता है।” आसिफ की पत्नी और बेटी न कहीं शॉपिंग करने जाते हैं, न बाहर खाना खाने, न सिनेमा देखने। घर से ही काम चल रहा है। वे बताते हैं, “हमने नई जीवनशैली अपना ली है। अब हम खाने की मेज पर ज्यादा समय बिताते हैं।”

बिजनेस तो बहुत कम हो ही गया है। बड़े-बड़े नामों वाले क्लाइंट की सूची का अब कोई मतलब नहीं रह गया। आसिफ के कारपेट व्हाइट हाउस, गूगल, नासा और पेंटागन के दफ्तरों के अलावा लुइ विटों (पेरिस और काहिरा), ताज, हयात, हिल्टन और मैरियट जैसे होटल ब्रांड, रतन टाटा, केपी सिंह और ओमान के अरबपति मोहम्मद अल जुबेर के रिटेल स्पेस में भी दिखते हैं। अबू धाबी के क्रॉउन प्रिंस ने व्यक्तिगत याट में भी आसिफ के कारपेट का इस्तेमाल किया है। वे बताते हैं, “बड़ा चुनौतीपूर्ण समय है। कुछ  बेहतरीन कारीगर 16 वर्षों से हमारे साथ थे। अब वे घर जा चुके हैं। वाराणसी और आगरा की फैक्ट्रियों में हमें काफी नुकसान हुआ। बिजनेस पूरी तरह ठप हो गया है।”

पैसे की तंगी के बावजूद आसिफ ने अपने कर्मचारियों और बुनकरों को पैसे दिए। भर्राई आवाज में वे कहते हैं, “हमारे कई कर्मचारी कोविड-19 से ग्रस्त हो गए। हमने उनके लिए अस्पतालों मंे बेड, ऑक्सीजन और दवा का इंतजाम किया। कई रातें बिना सोए गुजारीं ताकि वे बच सकें। कर्मचारियों को वेतन देते रहे ताकि उन्हें यह न लगे कि वह बेरोजगार हो गए हैं।” लंबे व्यापारिक संबंधों के चलते वर्साचे जैसे ब्रांड ने काफी मदद की, लेकिन अनेक क्लाइंट ने ऑर्डर रद्द भी किए। वे बताते हैं, “हमारे लिए यह दोहरा संकट था। एक तरफ आमदनी बंद हो गई तो दूसरी तरफ कुछ खर्चे ज&

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