धार्मिक

कर्मों पर आधारित रोग

शास्त्रों में कुछ रोगों की उत्पत्ति गत जन्म में किये गये कर्मों के आधार पर बताई गई है। महर्षि शातातप ने शातातप स्मृति लिखी है। उसमें कर्म विपाक का विवरण मिलता है। अर्थात् शुभ-अशुभ जो कर्म किये गये हैं उनके फलों का विवरण है। यद्यपि कर्म विपाक पर सूर्यारुण कर्मविपाक संहिता भी है, परन्तु महर्षि शातातप अधिक प्रसिद्ध हुए।
पाप रोग

  1. ब्रह्महत्या पाण्डुकुष्ठ
  2. गोवध कुष्ठ
  3. पितृवध चेतनाहीनता
  4. मातृवध अन्धत्व
  5. भगिनीहत्या बधिर
  6. भ्रातृवध मूक (गूँगा)
  7. बालघाती मृतवत्सवाला
  8. गोत्रहा कुष्ठी, निर्वंश
  9. स्त्रीहन्ता अतिसार
  10. राजहत्या क्षय
  11. उष्ट्रहत्या क्षय
  12. अश्वहत्या वक्रतुण्ड
  13. हरिणहत्या खंज (लँगड़ा)
  14. मार्जारहत्या पीतपाणि
  15. शुक-सारिका-वध स्खलितवाक् (हकलाना)
  16. वकहत्या दीर्घ नासिका
  17. काकवध कर्णहीन
  18. सुरापान श्यावदन्त (काले-पीले दाँतवाला)
  19. मद्यपानी रक्तपित्त
  20. अभक्ष्यभक्षण उदरक्रिमि
  21. विष देने वाला छर्दिरोग
  22. मार्ग तोडने वाला पादरोगी (पाँवका रोगी)
  23. धूर्तता अपस्माररोग
  24. दूसरे को कष्ट देने वाला शूल रोग
  25. दावाग्नि-दाता रक्तातिसार
  26. देव-मंदिर या जल में मूत्रोत्सर्ग करने वाला भयंकर गुदारोग
  27. गर्भपात यकृत और प्लीहा सम्बन्धी एवं जलोदररोग
  28. मूर्तिभंजक अप्रतिष्ठा (स्थिरता का अभाव)
  29. दुष्ट वचन बोलने वाला खण्डित
  30. परनिन्दा खल्वाट (गंजापन)
  31. दूसरे का उपहास करने वाला काना
  32. सभा में पक्षपात करने वाला पक्षाघात
  33. स्वर्णचोर कुलघ्न
  34. काँसे की चोरी करने वाला पुण्डरीक रोग
  35. ताम्रचोर औदुम्बररोग (एक प्रकार का कुष्ठ)
  36. पीतल की चोरी पिङ्गलाक्ष
  37. मोती की चोरी पिङ्गमूर्धज (कुछ भूरे बालवाला)
  38. त्रपुहारी (सीसाचोर) नेत्ररोगी
  39. दुग्ध चोर बहुमूत्री
  40. लौहचोर कर्बूराङ्ग (चितकबरे अंगवाला)
  41. तैलचोर खुजलीरोग
  42. कच्चा अन्न चुराने वाला दन्तहीन
  43. पक्वान्नहरी जिह्वारोग
  44. विद्या और पुस्तक का हरण करने वाला मूक
  45. वस्त्र चोर कुष्ठी
  46. औषधिचोर सूर्यावर्त (अर्धकपाली)
  47. विप्र के रत्नों को चुराने वाला अनपत्यता
  48. देवमूर्तियों की चोरी विभिन्न प्रकार के ज्वर
  49. अगम्यागमन अनेक रोग
    ऋषि का कहना है कि इन पापों के शमन के लिए पातक, उपपातक तथा महापातक के बलाबल का विचार करके पापों की शांति के निमित्त गोदान, वृषभदान, भूमिदान, धान्यदान, वस्त्रदान, त्र्यम्बक मंत्र का एक लाख जप, पूजन-हवन और गृहशान्ति इत्यादि करवाना चाहिए। यह सब विधानपूर्वक होने चाहिए।

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