
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में इस बार डिजिटल प्लेटफाॅर्म सबसे अहम भूमिका निभा रहा है। इस प्लेटफाॅर्म ने राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की मतदाताओं तक पहुंच आसान की है। पर, दूसरी तरफ इस तकनीक का स्याह पहलू भी सामने आ रहा है। नेताजी दिनभर चुनाव में पसीना बहाते हैं, जेब ढीली करतेे हैं, पर शाम होते-होते एक एनीमेटेड तस्वीर या वीडियो ऐसा वायरल होता है कि उनकी सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है। यही है डीपफेक टेक्नोलाॅजी, जो हू-ब-हू नकली चेहरा और आवाज पर्दे पर उतार देती है। एआई इमेज तैयार करने से जुड़ी डीपफेक इनसाइडर के मुताबिक राजनीतिक दलों से जुड़े 80 हजार से ज्यादा डीपफेक पोस्ट इस समय इंस्टा, व्हाट्सएप, एक्स से लेकर फेसबुक तक पर वायरल हैं। तकनीक के माहिर युवाओं के लिए चुनावी सीजन सहालग से कम नहीं है, क्योंकि ऐसी पोस्ट बनाने और वायरल करने की फीस तीन लाख से लेकर एक करोड़ रुपये तक है। डीपफेक में असली और नकली की पहचान करना बेहद मुश्किल होता है। इसमें किसी भी तस्वीर, ऑडियो या वीडियो को फेक यानी फर्जी दिखाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ डीप मशीन लर्निंग का इस्तेमाल होता है। इसीलिए इसे डीपफेक कहा जाता है। 76 प्रतिशत लोगों को नहीं मालूम कि डीपफेक वीडियो होता क्या है। ऐसे में जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव होने जा रहे हैं, तो आसानी से समझा जा सकता है कि कैसे इस तकनीक का इस्तेमाल कर मतदाताओं को भ्रमित किया जा रहा है।