राजनीति

मोदी के सहारे आदिवासियों का दिल जीतेंगे शिवराज-अरुण पटेल

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 15 नवम्बर को राजधानी भोपाल में जनजातीय गौरव दिवस के मेगा इवेन्ट के सहारे प्रदेश की 21 प्रतिशत से कुछ अधिक आदिवासियों का दिल जीत कर उन्हें भाजपा से जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई  छवि के सहारे प्रयास करने जा रहे हैं। इस अवसर पर एक तरफ तो मोदी की अगवानी आदिवासी अंदाज में होगी तो वहीं दूसरी ओर इसी दिन हबीबगंज रेलवे स्टेशन का शुभारंभ मोदी करने वाले हैं । हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलावती किया जा रहा है। इस प्रकार एक संदेश देने के लिए इस स्टेशन का नामकरण  आदिवासी समाज को एक सौगात देते हुए उनको समर्पित किया गया है। जिस-जिस मार्ग से मोदी का काफिला गुजरेगा वहां- वहां आदिवासी संस्कृति नजर आएगी। आदिवासी समुदाय को अपने साथ जोड़े रखने के लिए कांग्रेस भी इसी दिन जबलपुर में एक आदिवासी सम्मेलन करने जा रही है जिसमें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी उपस्थित रहेंगे। इस प्रकार अब प्रदेश में आदिवासी मतदाताओं को रिझाने के लिए भाजपा और कांग्रेस कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे।

हाल ही के 19 राज्यों में हुए लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों में भाजपा विरोधी लहर को थामने में प्रदेश में शिवराज सफल रहे थे। यहां पर भाजपा ने एक लोकसभा और दो विधानसभा क्षेत्रों में जीत का परचम लहरा कर यह साबित कर दिया कि अब फिर प्रदेश के मतदाताओं के सिर शिवराज का जादू परवान चढ़ने लगा है, क्योंकि हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक तथा महाराष्ट्र में हुए उपचुनावों में भाजपा को धीरे से जोर का झटका लगा था तो वहीं मध्यप्रदेश में इसके विपरीत नतीजे आये तथा भाजपा ने कांग्रेस की दो परम्परागत सीटों पर भी कब्जा कर लिया। लेकिन भाजपा तीन दशक से अपनी रैगांव की जीतती आ रही सीट को बचाने में सफल नहीं रही। 2023 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अभी से बिसात बिछाना भाजपा ने चालू कर दिया है और इसी कड़ी में राजधानी भोपाल में जो जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर मेगा इवेन्ट किया जा रहा है उसकी थीम पूरी तरह से आदिवासी रहेगी क्योंकि मंच पर मोदी, शिवराज और विष्णु दत्त शर्मा के अलावा आदिवासी एवं जनजाति नेता ही बैठेंगे। इस प्रकार आदिवासियों को पूरा मान-सम्मान देकर भाजपा इन वर्गों में फिर से अपनी जड़ें काफी गहरी करने की योजना बना रही है। 

      भोपाल का जम्बूरी मैदान जिस मेगा इवेन्ट का साक्षी बनने जा रहा है उसके लिए पांच डोम तैयार किए जा रहे हैं तथा 90 से ज्यादा मेगा स्क्रीन लगाई जा रही हैं ताकि हर जगह से प्रधानमंत्री मोदी को मैदान में उपस्थित हर व्यक्ति आसानी से देख सके । भाजपा का लक्ष्य इस अवसर पर ढाई लाख आदिवासियों को जुटाने का है और उसी हिसाब से सभी इंतजाम भी किए जा रहे हैं। पहली बार आदिवासी वर्ग के सारे जननायकों के होर्डिंग व कट- आउट एक साथ नजर आयेंगे। प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री चौहान भी पारंपरिक आदिवासी पगड़ी पहनेंगे तथा आदिवासी पुरुष धोती-कुर्ता-पगड़ी और महिलाएं चोली-लहंगे और ओढ़नी के साथ परम्परागत जेवर पहनकर समूह में पहुंचेंगे। आदिवासी संस्कृति को साकार करने के लिए आदिवासी समूह ढोल-मांदल पर नाचते-गाते पारंपरिक वेश-भूषा में नजर आयेंगे। प्रदेश के राज्यपाल मंगूभाई पटेल स्वयं आदिवासी हैं और पड़ोसी राज्य गुजरात के एक बड़े आदिवासी नेता रह चुके हैं। भाजपा का प्रयास लगभग 19 साल बाद ढाई लाख आदिवासी जुटाकर 84 विधानसभा सीटें साधने का है। दिल्ली में जहां 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति बन रही है तो वहीं मध्यप्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनाव का शंखनाद  15 नवम्बर को होने जा रहा है।

आदिवासी मतदाता लगभग 84 विधानसभा क्षेत्रों के चुनाव परिणाम प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। इससे पहले भाजपा व हिंदूवादी संगठनों ने झाबुआ में वर्ष 2002 में आदिवासियों को एकजुट करने के लिए हिंदू संगम का आयोजन किया था जिसमें लगभग दो लाख आदिवासी जुटे थे। इसके बाद 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 में 37 सीटें जीत ली थीं और अब जोबट उपचुनाव जो कि कांग्रेस का परम्परागत गढ़ रहा है उसे जीतकर भाजपा पूरे जोश में है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद विष्णुदत्त शर्मा का लक्ष्य है कि प्रदेश में 51 प्रतिशत मतदाता उसके रंग में रंगे नजर आयें। विधानसभा में भी हाल ही की एक और सीट जीतने के बाद उसके आदिवासी विधायकों की संख्या 17 हो गयी है। कांग्रेस के पास 30 आदिवासी विधायक वर्तमान में हैं। वर्ष 2013 में 31 सीटें भाजपा के पास थीं।

भाजपा मिशन 2023 के तहत आदिवासी वोट बैंक फिर से वापस चाहती है। लेकिन उसके पास एक बड़े आदिवासी चेहरे का अभी अभाव है और इस बीच वह किसी चेहरे को उभार कर इस कमी को पूरा करने का प्रयास करेगी। उसका यह लक्ष्य आदिवासी वोट पर मजबूत पकड़ बनाये बगैर हासिल नहीं हो सकेगा। वैसे भले ही फिलहाल प्रदेश में जो कांग्रेस की हालत होती जा रही है उसे देखते हुए वह भाजपा के सामने कोई बड़ी चुनौती नहीं है लेकिन यदि आदिवासी वोटों के हिसाब से देखा जाए तो कुछ मुश्किल है ।हालांकि मार्च 2020 में दलबदल के सहारे भाजपा ने सरकार जरुर बना ली, लेकिन आदिवासी वोट अभी भी पार्टी से नहीं जुड़ पाये हैं। अब उसे इन वोटों की दरकार है और इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए अपनी ओर से वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करिश्माई छवि से बहुत अधिक उम्मीदें लगा रही है। 

मंच पर होंगे सिर्फ आदिवासी चेहरे

     आदिवासी समागम की जो रुपरेखा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा ने तैयार की है उसमें मंच पर मुख्यमंत्री, पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को छोड़कर सिर्फ आदिवासी नेता ही कुर्सियों पर बैठेंगे।

2018 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को कुल 41.02 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि सहयोगियों के साथ अल्पमत की सरकार बनाने वाली कांग्रेस को उससे कम 40. 89 प्रतिशत वोट मिले थे परंतु उसने 114 सीटें जीत ली थीं और भाजपा ज्यादा वोट लेने के बावजूद सरकार से बाहर हो गई थी। भाजपा के प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव फरमाते हैं कि पार्टी ने हर पोलिंग स्टेशन पर 11 प्रतिशत वोट बढ़ाने का लक्ष्य रखा है, इसका साफ अर्थ यही है कि पार्टी 2018 के चुनाव परिणामों के आधार पर नये वोटर जोड़ने की दिशा में काम कर रही है। उपचुनावों के जो नतीजे आये हैं वे आदिवासियों को लेकर भाजपा की चिन्ता का कारण बने हैं। राज्य में आदिवासियों के लिये कुल 47 सीटें आरक्षित हैं लेकिन आदिवासी वोटर लगभग 84 सीटों पर निर्णायक माने जाते हैं।

राज्य में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं और साधारण बहुमत के लिए कुल 116 सीटों की जरुरत होती है। राज्य में 1972 से ही कांग्रेस और भाजपा के बीच राजनीतिक ध्रुवीकरण हो चुका है और इनमें ही सीधा मुकाबला होता है, अन्य दलों ने तीसरी ताकत बनने का भले ही जी-जान से प्रयास किया हो लेकिन उन्हें बिलकुल सफलता नहीं मिली। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का गठन भी आदिवासी वोटों को ध्यान में रखकर हुआ था लेकिन समय के साथ यह पार्टी कई धड़ों व गुटों में बंट गयी, इस पार्टी का असर केवल महाकौशल क्षेत्र और विंध्य अंचल के कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित था। वर्ष 2003 से चुनाव में भाजपा ने इनके नेताओं का उपयोग कांग्रेस के आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए करना चालू किया था। इसका ही नतीजा था कि कांग्रेस 15 साल तक सरकार में वापस नहीं आ सकी। 2018 में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का उपयोग बखूबी कमलनाथ ने किया और उसका फायदा कांग्रेस को मिला।

भाजपा को इस समय निमाड़-मालवा अंचल के आदिवासी वोटों को लेकर चिन्ता है। इस अंचल में जयस नाम के एक आदिवासी संगठन का उदय हुआ और युवा आदिवासियों के इस संगठन के मुखिया डॉ. हीरालाल अलावा को कांग्रेस ने टिकट देकर अपने पक्ष में कर लिया और इसमें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने प्रमुख भूमिका निभाई। जयस का एक धड़ा ऐसा भी  है जो कांग्रेस से मिलकर राजनीति नहीं करना चाहता और यही स्थिति भाजपा के लिए सुविधाजनक हो सकती है बशर्ते वह इस धड़े का उपयोग गोंडवाणा गणतंत्र पार्टी की तरह कर सके। जोबट विधानसभा के उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार की जीत को इसी प्रयोग से जोड़कर देखा जा रहा है। यह सीट परंपरागत रुप से कांग्रेस की थी और अपवाद स्वरुप दो बार ही भाजपा यहां जीत पाई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के चेहरे के सहारे भाजपा लगभग पौने तीन लाख वोटों से खंडवा लोकसभा सीट जीती थी। उपचुनाव में हार-जीत का अंतर घटकर लगभग 80 हजार रह गया है। जबकि ऐन मौके पर जब प्रचार अभियान शबाव पर था कांग्रेस के विधायक सचिन बिरला पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गए थे उसके बाद भी जीत-हार का अंतर सिमटने के कारण भाजपा अंदर ही अंदर चिंतित है और अब आदिवासी समागम के माध्यम से वह फिर से अपनी जमीन पुख्ता करना चाहती है।

और यह भी एक ओर जहां भाजपा राजधानी में आदिवासी समागम करने जा रही है तो वहीं कांग्रेस ने भी संस्कारधानी जबलपुर में आदिवासी सम्मेलन को इसी दिन आयोजित करने का ऐलान कर अपनी ताकत बताने की कोशिश की है। सम्मेलन में प्रदेश भर से आदिवासियों को आमंत्रित किया गया है और इसकी जिम्मेदारी पूर्व वित्त मंत्री तरुण भानोत को सौंपी गयी है। कांग्रेस भी इस अवसर पर आदिवासियों में अपनी पैठ और मजबूत करने का प्रयास करेगी तथा अब 2023 के विधानसभा चुनाव तक दोनों के बीच रस्साकसी दिन-प्रतिदिन और तेज होती जायेगी।

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button