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करौली दंगों को आज 6 दिन हो गए हैं। लोग अपने ही घरों में कैद हैं। दूध-सब्जी जैसी जरूर चीजों के लिए भी मोहताज हैं। हमेशा आबाद रहने वाली करौली की गलियों में डरावना सन्नाटा है। इलाके में 7 अप्रैल तक इंटरनेट भी बंद रहेगा।
दंगों का सच जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम 5 दिन से करौली में है। इन 5 दिनों में 50 से ज्यादा चश्मदीदों और दंगा पीड़ितों से बात की। 25 से ज्यादा वीडियो फुटेज खंगाले। इस पड़ताल में जो सच सामने आया वो चौंकाने वाला था।
जब दंगाई पत्थर बरसा रहे हैं, दुकानें जला रहे हैं, लोगों पर लाठी-सरियों से हमला कर रहे थे, पुलिस तमाशबीन बनकर खड़ी थी, मोबाइल में वीडियो रिकॉर्ड किए जा रहे थे। भास्कर को ऐसे कई VIDEO मिले, जिनमें साफ दिख रहा है कि पुलिस ने दंगों को कंट्रोल करने की कोशिश ही नहीं की।
ठीक है, गाड़ी तोड़ दिया, अब चले जाओ, जाओ
एक वीडियो में साफ दिख रहा है कि पथराव के बाद लोग घरों से लाठी-डंडे लेकर गली में आ गए। वाहनों में तोड़फोड़ करते रहे। पुलिस की मौजूदगी में दंगाई लोगों को लाठी-सरियों से मार रहे थे। पुलिसकर्मी उन्हें केवल बोलते रहे कि ठीक है, गाड़ी तोड़ दिया, अब चले जाओ, जाओ, नहीं तो दंगा हो जाएगा।
अरे हो गया, हो गया, अब बस जाओ, जाओ आराम से घर जाओ। इनमें नाबालिग बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक दिखाई दे रहे हैं। ये वीडियो भी दो से तीन मिनट के हैं। कुछ वीडियो तो ऐसे हैं, जो खुद पुलिसकर्मियों ने बनाए थे।
पुलिसकर्मियों के सामने ही जलाई दुकानें
पथराव के बाद दंगाइयों ने पुलिस के सामने दुकानों में आग लगाई, गाड़ियां जलाईं। पुलिस सख्ती से निपटने के बजाय सिर्फ दंगाइयों से औपचारिक समझाइश करते नजर आई।
इसी लापरवाही का नतीजा है कि 1 मकान, 35 दुकानें और 30 से ज्यादा दुकानें जला दी गईं। 40 से ज्यादा लोग घायल हो गए, जिनमें 4 पुलिसकर्मी भी हैं। 6 दिन से इलाके में कर्फ्यू लगा हुआ है।
घर की छत पर पत्थरों का ढेर
भास्कर टीम उस गली में भी पहुंची, जहां पथराव हुआ था। गली के एक कोने में कुछ पुलिसकर्मी बैठे थे। गली पूरी तरह से सुनसान थी। भास्कर टीम किसी एक मकान की छत पर पहुंची, वहां पत्थरों का ढेर लगा हुआ था।
बाकी मकानों की छत पर नजर दौड़ाई तो उनमें भी पत्थर दिखाई दिए। दंगों के 6 दिन बाद भी पुलिस ने छतों से पत्थर नहीं हटाए हैं।
काश, कॉन्स्टेबल नेत्रेश जैसी बहादुरी दूसरे पुलिसकर्मी भी दिखाते
करौली दंगों के दौरान पुलिस के दो चेहरे सामने आए। एक कॉन्स्टेबल नेत्रेश, जिन्होंने बहादुर दिखाते हुए जान की परवाह किए बगैर आग में फंसी मां और उसकी ढाई साल की बेटी को बचाया। वहीं भास्कर इंवेस्टिगेशन में सामने आया पुलिस को दूसरा चेहरा चिंता बढ़ाने वाला है।
वीडियो में दिख रहे ये पुलिसकर्मी भी कॉन्स्टेबल नेत्रेश जैसी बहादुरी दिखाते तो शायद दंगों की आग इतनी नहीं भड़कती। पुलिस ने शुरुआत से इस मामले में लापरवाही बरती। विवाद की आशंका के बावजूद न बाइक रैली का रुट डायवर्ट किया और न ही ड्रोन सर्वे कराया।
रैली के लिए महज 30 पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगाई, जबकि बाकी जाब्ता करौली के कैला देवी मेले में लगाया हुआ था। इस वजह से जब दंगा भड़का तो पुलिस जाब्ता समय पर नहीं पहुंच पाया। जो पुलिसकर्मी मौके पर थे, वे भी तमाशबीन बने हुए थे।