
बिलासपुर । केंद्र सरकार ने सीबीआई और ईडी प्रवर्तन निदेशालय के मुखिया का कार्यकाल अध्यादेश के द्वारा 5 साल कर दिया है। अध्यादेश ऐसे समय आया जब लोकसभा का सत्र प्रारंभ होने में कुछ ही दिन शेष थे इसी तरह का अध्यादेश कृषि क्षेत्र पर भी आया था कुल मिलाकर निर्वाचित सदन होते हुए भी सरकार बार-बार अध्यादेश के मार्फत अपना काम चलाना चाहती है।
सीबीआई और ईडी के निर्देशकों का कार्यकाल सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से जुड़ा हुआ है 1993 की एक जनहित याचिका विनीत नारायण बनाम भारत सरकार में 1997 में फैसला हुआ और उच्चतम न्यायालय ने इस आशय के निर्देश दिए की सर्वोच्च संस्था में जो मुखिया नियुक्त हो उसका कार्यकाल 2 साल का हो, अब अध्यादेश के मार्फत एससी के उस फैसले की भावना की उपेक्षा हो रही है मुखिया को सीधा 5 साल की नियुक्ति दे दी जाए तो भी ठीक है किंतु टुकड़े में एक्सटेंशन देना तो कहीं ना कहीं गिभ इन टेक की पॉलिसी हो जाएगी ।
उच्चतम न्यायालय तोते को पिंजरे से बाहर निकालना चाहता है और सत्ता में बैठे लोग तोते को अब कुछ और बनाने पर आमादा है इसी तरह संवैधानिक प्रावधान के बाहर जाते हुए सदन में तीन कृषि कानून पटल पर रखे गए प्रक्रिया गत दोष करते हुए पास किए गए जबकि अनुसूची के बंटवारे के हिसाब से देखें तो कृषि पर केंद्र को कानून बनाने का हक नहीं है। कृषि संयुक्त अनुसूची का विषय ही नहीं राज्य की अनुसूची में कृषि एक नहीं 8 बार आया है जबकि केंद्र की अनुसूची में कृषि शब्द एक बार भी नहीं आया है उच्चतम न्यायालय में जब कृषि कानूनों पर प्रारंभिक चर्चा हुई तो उभय पक्ष के अधिवक्ताओं ने अनुसूची की बात उठाई है न्यायालय ने समिति का गठन किया था समिति की रिपोर्ट न्यायालय के पास जमा है अब लोकसभा में घड़ी घूमेगी उल्टी जो कानून जहां पर बन ही नहीं सकता था वहां पर किया जाएगा समाप्त।