
जिस प्रकार पानी में तैरती नाव को प्रचंड वायु दूर बहा ले जाती है, उसी प्रकार विचारणशील इंद्रियों में से कोई एक जिस पर मन निरंतर लगा रहता है, मनुष्य की बुद्धि को हर लेते हैं। यदि समस्त इंद्रियां भगवान की सेवा में न लगी रहें और यदि इनमें से एक भी अपनी तृप्ति में लगी रहती है तो वह भक्त को दिव्य प्रगति पथ से विपथ कर सकती है। जैसा कि महाराज अ बरीष के जीवन में बताया गया है, समस्त इंद्रियों को कृष्णभावनामृत में लगा रहना चाहिए क्योंकि मन को वश में करने की यही सही एवं सरल विधि है।