छत्तीसगढ़

ईश्वर के प्रतिरूप होते हैं मां-बापः पं. त्रिभुवन

Publish Date: | Sat, 30 Oct 2021 07:11 AM (IST)

रावन। मां-बाप ईश्वर के प्रति रूप होते हैं। जिनका तिरस्कार कभी नहीं करना चाहिए। वेद विज्ञान की जननी है। सबसे पहले शरीर दान दधीचि ऋषि ने दिया था। स्थानीय तिगड्डा चौक के पास आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह कथा के चौथे दिन समुद्र मंथन, वामन अवतार व कृष्ण जन्मोत्सव की कथा कहते हुए बारूला निवासी पंडित त्रिभुवन महाराज ने उक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि भगवान वामन ने तीन पग भूमि के बदले राजा बली से उसके द्वारा तन, मन और धन से किए गए समस्त पापों को मांग लिया। दान से धन का पवित्र होना बताते हुए उन्होंने कहा कि अपने बच्चों को ऊंची से ऊंची शिक्षा प्रदान कराइए परंतु संस्कार की शिक्षा भी दिलाइए। रक्तदान, नेत्रदान और शरीर दान का वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति में सबसे पहले शरीर दान दधीचि ऋषि ने किया था। श्री कृष्ण जन्म पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि बच्चों का जन्म दिवस दीपक जलाकर बनाएं न कि मोमबत्ती बुझा कर। उन्होंने कहा कि मृतक स्वजनों की पुण्य स्मृति में पौधारोपण अवश्य कराएं क्योंकि पेड़ फल, छाया और लकड़ी के रूप में ईंधन प्रदान करता है। उन्होंने श्रीराम को ब्रह्म भरत को विष्णु शत्रुघ्न को वेद और लक्ष्मण को सेठजी का अवतार बताते हुए कहा कि वरदानी मेघनाथ को 14 वर्षों तक निद्रा का त्याग करने के कारण है लक्ष्मण ने मार पाया था। भगवान नाम जप को आवश्यक बताते हुए उन्होंने कहा कि खेतों में बीज को किसी प्रकार भी डाल देने से जिस प्रकार पौधे निकल आते हैं उसी प्रकार भगवान नाम लेने से पुण्य लाभ मिलता है।भजनों से घोला भक्तिरस : पारिवारिक कार्यक्रमों में घटते प्रेम पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि पहले कुटुंब परिवार के लोग भोजन पका कर प्रेम से खिलाते थे और नाचने वाले बाहर से आते थे परंतु आज भोजन पकाने वाले बाहर से बुलाए जाते हैं और परिजन नाच गान करते हैं। ‘तेरे भरोसे मेरी गाड़ी तू जाने तेरा काम जाने’ और ‘नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की’ जैसे भजनों से श्रोताओं को भक्ति का रस पान कराया।

Posted By: Nai Dunia News Network

 

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