अन्‍य

भेदभाव: यूपी के स्कूलों में बच्चों के बर्तनों की भी हैं जातियां? प्रिंसिपल निलंबित

भेदभाव: यूपी के स्कूलों में बच्चों के बर्तनों की भी हैं जातियां? प्रिंसिपल निलंबित
प्रतिकात्मक तस्वीर

e0a4ade0a587e0a4a6e0a4ade0a4bee0a4b5 e0a4afe0a582e0a4aae0a580 e0a495e0a587 e0a4b8e0a58de0a495e0a582e0a4b2e0a58be0a482 e0a4aee0a587 61531cf9a2746

आउटलुक टीम

उत्तर प्रदेश में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है। मामला राज्य के मैनपुरी जिले का है, जहां एक सरकारी स्कूल में दलित बच्चों को मिड डे मील खाने के बाद अपने बर्तन अलग कमरे में रखने पड़ते हैं ताकि ऊंची जाती के बच्चों के बर्तन से छू न जाएं। इसे सदियों पुरानी परंपरा बताने वाली प्रिंसिपल को सरकार ने निलंबित कर दिया तो इसके विरोध में गांव के ऊंची जाति‍ के लोगों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया। इसलिए सोमवार को स्कूल में कुल 80 बच्चों में सिर्फ 26 दलित बच्चे ही पढ़ने आए। अगड़ी जाति वालों का कहना है कि निलंबित प्रिंसिपल वापस आएंगी तभी उनके बच्चे स्कूल जाएंगे।

एनडीटीवी की खबर के मुताबिक, प्राथमि‍क विद्यालय दउदापुर में सारे बच्चे पढ़ते तो साथ ही हैं, लेकिन मिड डे मील खा उन्हें अपने बर्तन जाति के हिसाब से अलग-अलग रखने पड़ते हैं बायीं तरफ दलित बच्चों के बर्तन रखने का कमरा है और दायीं तरफ किचन है जहां ऊंची जाति और ओबीसी बच्चों से बर्तन रखवाए जाते हैं। प्रधान पति ने रसोइया से सारे बच्चों के बर्तन धोने कहा तो उसने नाराज होकर नौकरी छोड़ दी।

यूपी के बहुत सारे स्कूलों में अक्षय पात्र जैसी किचन सेसवा चलाने वाली संस्था मिड डे मील बनाकर गर्म खाना स्कूलों में सप्लाई करती है। वहां इस तरह की समस्या नहीं है, लेकिन बहुत सारे स्कूलों में जहां रसोइया खाना बनाकर मिड डे मील देता है, बच्चों को वहां दोनों तरह की समस्याएं हैं। अगर रसोइया दलित है तो बहुत सारे ऊंची जाति के बच्चे उसका खाना खाने से मना करते हैं और अगर रसोइयां ऊंची जाति से है तो वो दलित बच्चों के साथ भेदभाव करता है।

मैनपुरी के दउदापुर की आबादी करीब डेढ़ हजार है, जिनमें करीब 654 फीसदी अगड़ी और पिछड़ी जाति के लोग हैं और करीब 35 फीसदी दलित। स्कूल की शिकायत होने पर शिक्षा विभाग ने रसोइया और उसकी सहायिका को नौकरी से निकाल दिया और प्रिंसिपल को सस्पेंड कर दिया। इससे नाराज अगड़ी और पिछड़ी जाति वालों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया। दलितों की सियासत में वोट के लिए चाहे जितनी पूछ हो, लेकिन समाज में तो बहुत जगह दउदापुर प्रथामिक विद्यालय जैसे ही हालात हैं।

Related Articles

Back to top button