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कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख की टिप्पणी पर भारत ने जताई निराशा, कहा- जमीनी हकीकत के विपरीत

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आउटलुक टीम

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भारत ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख द्वारा की गई ‘‘अनुचित टिप्पणियों’’ पर निराशा जताते हुए कहा कि उनकी टिप्पणियां जमीनी हकीकत को नहीं दर्शाती हैं और मानवाधिकारों को बनाए रखने में किसी भी कमी को निष्पक्ष तरीके से संबोधित किया जाना चाहिए तथा देश के आंतरिक मामलों में दखल नहीं होना चाहिए।

विदेश मंत्रालय में सचिव (पश्चिम) रीनत संधू ने कहा, ‘‘हमने उच्चायुक्त द्वारा मौखिक अपडेट में भारत के संदर्भों का संज्ञान लिया है और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर पर उनकी अनुचित टिप्पणी पर अपनी निराशा व्यक्त करते हैं, जो जमीनी हकीकत को नहीं दर्शाता है।’’ संधू ने मंगलवार को मानवाधिकार परिषद के 48वें सत्र में उच्चायुक्त के मौखिक रूप से अद्यतन स्थिति पर सामान्य बहस के तहत भारत की टिप्पणी में यह कहा।

संधू ने आगे कहा कि वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उसके संरक्षण के लिए भारत का दृष्टिकोण ‘‘एक बहुलवादी और समावेशी समाज और जीवंत लोकतंत्र के रूप में हमारे अपने अनुभव पर आधारित हैं।’’

उन्होंने कहा कि भारत का मानना है कि मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण को देशों के बीच संवाद, परामर्श और मदद के माध्यम से तथा तकनीकी सहायता तथा क्षमता निर्माण के प्रावधान के जरिए आगे बढ़ाया जाता है।

उन्होंने कहा ‘‘मानव अधिकारों को बनाए रखने में किसी भी कमी को पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से संबोधित किया जाना चाहिए, राष्ट्रीय संप्रभुता और देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।’’

मानवाधिकार के लिए संयुक्त राष्ट्र की उच्चायुक्त मिशेल बाचेलेट ने सोमवार को भारत द्वारा गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के उपयोग के साथ-साथ जम्मू कश्मीर में ‘‘लगातार’’ अस्थायी तौर पर संचार में व्यवधान को ‘‘चिंताजनक’’ बताया।

जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के 48वें सत्र में अपने उद्घाटन वक्तव्य में बाचेलेट ने जम्मू कश्मीर में आतंकवाद का मुकाबला करने और विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के प्रयासों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि इस प्रकार के ‘‘प्रतिबंधात्मक उपायों के परिणामस्वरूप मानवाधिकारों का उल्लंघन हो सकता है और आगे तनाव और असंतोष बढ़ सकता है।’’

संधू ने कहा कि भारत का संविधान बुनियादी मानवाधिकारों को मौलिक अधिकारों के रूप में सुनिश्चित करता है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारी संसद, स्वतंत्र न्यायपालिका, जीवंत मीडिया और सिविल सोसाइटी, हमारे लोगों द्वारा मानवाधिकारों का पूरा फायदा सुनिश्चित करते हैं।”

अफगानिस्तान पर संधू ने कहा कि देश में स्थिति ‘‘गंभीर’’ बनी हुई है और कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा प्रस्ताव-2593 को अफगानिस्तान के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दृष्टिकोण का मार्गदर्शन करना चाहिए।

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