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क्या अमित शाह के खिलाफ जाने की वजह से जस्टिस कुरैशी नहीं बने सुप्रीम कोर्ट के जज, गृह मंत्री को भेजा था हिरासत में

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आउटलुक ब्यूरो

सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब एक साथ नौ जजों ने शपथ ली है। इसमें तीन महिलाएं भी शामिल हैं। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में नियुक्त नौ नए न्यायाधीशों को सीजेआई एनवी रमण मंगलवार को शपथ दिलाई। नौ नए जजों की शपथ के बाद शीर्ष अदालत में सीजेआई रमण समेत जजों की संख्या बढ़कर 33 हो जाएगी, जबकि स्वीकृत संख्या 34 है। इसमें शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों के रूप में पद की शपथ लेने वाले नौ नए न्यायाधीशों में शामिल हैं- न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार माहेश्वरी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना, न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार, न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और पीएस नरसिम्हा।

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एक तरफ ये ऐतिहासिक है वहीं जस्टिस अकील कुरैशी का इन सूची में नाम न होने से जानकार हैरानी जता रहे हैं। क्योंकि, जस्टिस कुरैशी देश के हाईकोर्ट जजों में से सबसे वरिष्ठ में से एक माने जाते हैं। जस्टिस अब्दुलहमीद कुरैशी ने ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को एक दशक पहले सीबीआई हिरासत में भेजा था।

दरअसल, जब कोलिजियम की रिपोर्ट पर केंद्र ने मुहर लगाई थी तो जारी सूची को न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन के रिटायर होने के बाद जारी किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस नरीमन सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के तीसरे वरिष्ठतम सदस्य थे और वो दूसरे नाम पर विचार करने से पहले वे न्यायमूर्ति कुरैशी जैसे वरिष्ठ जज को शीर्ष अदालत में भेजे जाने के पक्षधर थे और ये मामला महीनों लटका था।

जस्टिस कुरैशी 7 मार्च 2022 को हाईकोर्ट के जज के रूप में सेवानिवृत्त होने वाले हैं। अभी वो त्रिपुरा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस हैं। 2010 में जस्टिस कुरैशी ने भाजपा नेता अमित शाह, जो इस वक्त देश के गृहमंत्री हैं, को सोहराबुद्दीन मुठभेड़ हत्या मामले में दो दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया था। वो उस वक्त गुजरात के तत्कालीन कनिष्ठ गृह मंत्री थे। वहीं, जस्टिस कुरैशी ने 2012 में एक फैसले के तहत (सेवानिवृत्त) जस्टिस आरए मेहता की लोकायुक्त के रूप में नियुक्ति को बरकरार रखा ‌था, जो राज्य सरकार के लिए बड़ा झटका था।

जस्टिस आर एफ नरीमन के 12 अगस्त को रिटायर हो जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या कम होकर 25 हो गई थी जबकि सीजेआई सहित न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 34 है। 19 मार्च 2019 में तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई सेवानिवृत्ति के बाद शीर्ष अदालत में कोई नियुक्ति नहीं हुई।

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