अन्‍य

“बिहार में बाढ सोने का अंडा देने वाली मुर्गी”: “ना रहने को तिरपाल, खाने को चूड़ा-गुड़ भी नहीं, सरकारी व्यवस्था लापता”

e0a4ace0a4bfe0a4b9e0a4bee0a4b0 e0a4aee0a587e0a482 e0a4ace0a4bee0a4a2 e0a4b8e0a58be0a4a8e0a587 e0a495e0a4be e0a485e0a482e0a4a1 60f42f5c31e01

“बिहार में बाढ़ सोने का अंडा देने वाली मूर्गी”: “ना रहने को तिरपाल, खाने को चूड़ा-गुड़ भी नहीं, सरकारी व्यवस्था लापता”
Neeraj Jha

e0a4ace0a4bfe0a4b9e0a4bee0a4b0 e0a4aee0a587e0a482 e0a4ace0a4bee0a4a2 e0a4b8e0a58be0a4a8e0a587 e0a495e0a4be e0a485e0a482e0a4a1 60f42f6185116

“बिहार में बाढ़ सोने का अंडा देने वाली मूर्गी”: “ना रहने को तिरपाल, खाने को चूड़ा-गुड़ भी नहीं, सरकारी व्यवस्था लापता”
Neeraj Jha

e0a4ace0a4bfe0a4b9e0a4bee0a4b0 e0a4aee0a587e0a482 e0a4ace0a4bee0a4a2 e0a4b8e0a58be0a4a8e0a587 e0a495e0a4be e0a485e0a482e0a4a1 60f42f667c8b5

“बिहार में बाढ़ सोने का अंडा देने वाली मूर्गी”: “ना रहने को तिरपाल, खाने को चूड़ा-गुड़ भी नहीं, सरकारी व्यवस्था लापता”
Neeraj Jha

e0a4ace0a4bfe0a4b9e0a4bee0a4b0 e0a4aee0a587e0a482 e0a4ace0a4bee0a4a2 e0a4b8e0a58be0a4a8e0a587 e0a495e0a4be e0a485e0a482e0a4a1 60f42f6b81331

“बिहार में बाढ़ सोने का अंडा देने वाली मूर्गी”: “ना रहने को तिरपाल, खाने को चूड़ा-गुड़ भी नहीं, सरकारी व्यवस्था लापता”
Neeraj Jha

इसे भी पढ़ें

जलेश्वरी देवी के परिवार में पांच लोग हैं। पिछले कई दिनों से उनके घर में ठीक से ना तो खाना बना है और ना ही घर में बनाने के लिए कुछ है। बूढ़ी गंडक नदी में आया उफान उनके पूरे सामान को बहाकर ले जा चुका है। करीब एक सप्ताह से वो बांध पर आसरा ली हुई हैं। एक पन्नी है जो दो बांस के खंभे के सहारे टंगी हुई है और उसमें सारे लोग गर्मी-बरसात का दंश झेलते हुए एक चारपाई पर रहने को मजबूर हैं। जलेश्वरी देवी के पति दिव्यांग हैं। हाथ से कोई काम नहीं कर सकते हैं। तंबू के नीचे मिट्टी का बना एक चुल्हा है।

ये कहानी मुजफ्फरपुर के बोचहां प्रखंड में आने वाले आथड़ गांव की है। जलेश्वरी देवी अकेली नहीं हैं। बांध पर करीब दो सौ परिवार रह रहे हैं। अभी भी गांव में एक हजार से अधिक लोग फंसे हुए हैं जो छत, छप्पर या ऊचें जगहों पर रहने को मजबूर हैं। ना कोई सरकारी नाव है और ना ही बोट-एनडीआरएफ की टीम। आउटलुक को जलेश्वरी देवी बताती हैं, “घर में चौकी, टीवी, बिस्तर, ठंड के कपड़े, रजाई जो भी था सब बह गया। कुछ भी नहीं निकाल पाएं। बस एक चारपाई (खटिया), और मिट्टी के बने चूल्हे लेकर आ गई। अब यहां ना तो खाना बनाने के लिए घर में दाना हैं और ना पैसे। सरकार की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं दी जा रही है। मदद के नाम पर पन्नी मिली है जो बहुत पतली है। तिरपाल मिलता तो बेहतर होता।”

e0a4ace0a4bfe0a4b9e0a4bee0a4b0 e0a4aee0a587e0a482 e0a4ace0a4bee0a4a2 e0a4b8e0a58be0a4a8e0a587 e0a495e0a4be e0a485e0a482e0a4a1 60f42f709a33d

जहां पर जलेश्वरी देवी ने आसरा ले रखा है उसके बगल में बांध से सटा एक मंदिर है, जिसकी छत और बांध दोनों समानांतर है। छत पर बैठे उनके पति प्रदीप शर्मा अपनी भरी आंखों से कहते हैं, “इसी छत पर रात में सो जाते हैं। बारिश आती है तो रातभर जगकर पन्नी के नीचे रहते हैं। अभी तक एक किलोग्राम के लगभग में चूड़ा मिला है। उसमें मिठ्ठा (गुड़) भी नहीं था। कैसे खाएं, क्या खाएं। पीने को पानी नहीं है। सरकारी नाव भी नहीं चल रही है। कुछ एक नाव हैं, जिनमें पैसा देकर आना-जाना पड़ता है।”

e0a4ace0a4bfe0a4b9e0a4bee0a4b0 e0a4aee0a587e0a482 e0a4ace0a4bee0a4a2 e0a4b8e0a58be0a4a8e0a587 e0a495e0a4be e0a485e0a482e0a4a1 60f42f7b21001

जलेश्वरी देवी के तंबू में गैस चूल्हा और सिलिंडर भी है, लेकिन वो एक कोने में रखा हुआ है। कारण पूछने पर कहती हैं, “कहां से सिलिंडर रिफिल करवाएं। पैसे नहीं है। अब एक हजार से अधिक रुपये देने पड़ते हैं गैस भरवाने के।” थोड़ा रूककर वो कहती हैं, “दीपक बाबू ने खाने-पीने की व्यवस्था करवानी शुरू की है, तब हमलोग कल से खाना खा रहे हैं।”

दीपक बाबू, ये दरअसल में दीपक ठाकुर हैं जो इसी आथर गांव से आते हैं। बिग बॉस सीजन-12 के फाइनल प्रतिभागी रह चुके हैं। गैंग ऑफ वासेपुर में प्लेबैक सिंगिंग भी कर चुके है। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले इन्होंने पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे पर चित्रित “रॉबिनहुड बिहार के गाने” गाए थे जिसे विवाद के बाद अपने यूट्यूब चैनल से हटाना पड़ा। बाढ़ में जब सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही है तब दीपक लगातार जिला प्रशासन और प्रखंड पदाधिकारी से अपील कर व्यवस्था करवाने में जुटे हुए हैं। आउटलुक से वो कहते हैं, “लोगों को ना खाने की व्यवस्था है, ना रहने की और ना पीने की। जिस नदी के पानी में पेड़ पर और जंगल में जाकर शौच कर रहे हैं। उसी पानी को गर्म कर पीने को मजबूर हैं। अभी हमलोग जिला प्रशासन की मदद से करीब चार शौचालय की व्यवस्था करवा रहे हैं। बगल के स्कूल में खाने की व्यवस्था की गई है। हमने लोगों से मदद की भी अपील की है, लेकिन लोग इसे मजाक बना रहे हैं और मुझे राजनीति से जोड़कर धंधेबाज करार दे रहे हैं।”

e0a4ace0a4bfe0a4b9e0a4bee0a4b0 e0a4aee0a587e0a482 e0a4ace0a4bee0a4a2 e0a4b8e0a58be0a4a8e0a587 e0a495e0a4be e0a485e0a482e0a4a1 60f42f856d4ac

दीपक अधिकारियों के खिलाफ गहरी नाराजगी भी जाहिर करते हैं और आरोप लगाते हुए कहते हैं, “तीन-चार दिन पहले नए सीओ (अंजलाधिकारी) आए हैं। फोन करने पर कहते हैं ये गांव किधर पड़ता है। मुझे सिर्फ एक हीं गांव को नहीं ना देखना है।” खाने-पीने की व्यवस्था के सवाल पर वो कहते हैं, “अकड़ दिखाते हुए सीओ कहते हैं जब बर्तन गिर गया है तो खाना भी बनने लगेगा। अब बताइए, क्या लोग बर्तन देखकर पेट भरेंगे। बाढ़ बिहार में सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है।”

इसी बांध पर रहने वाले उमेश ठाकुर कहते हैं, “पहले कोरोना, बेरोजगारी और अब बाढ़, दोहरी मार पड़ गई है। हर साल यही स्थिति है। रातभर जगकर रहना पड़ता है। बांध के कटने-टूटने का डर रहता है। सांप-गोजर की वजह से नींद नहीं आती है। क्या करें, कोई विकल्प नहीं है।”

Related Articles

Back to top button