“बुनकर पद्मश्री कपिल देव प्रसाद तांती ने बिहार में बुनकर तांती ततवा विलोपित पान सांसी जातियों का पारंपरिक पेशा हथकरघा वस्त्र की करीगिरी की पहचान देश दुनियां में पुनः स्मरण कराया। स्वजाति समाज ने पद्मश्री कपिल देव प्रसाद तांती अमिट पुरूष बहुमूल्य हीरा खो दिया है।” : राजेश प्रसाद तांती छत्तीसगढ़

2023 अप्रैल महीने में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने किया था सम्मानित
पटना बिहार। बुनकरी के दम पर देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित नालंदा के कपिल देव प्रसाद तांती ने दुनिया को अलविदा कह दिया। वह 71 वर्ष के थे। हृदय रोग से पीड़ित थे। पटना के एक निजी अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। वे नालंदा के बीघा के रहने वाले थे।

मौत की खबर मिलते ही पूरे नालंदा में शोक की लहर दौड़ गई। इस मौके पर कपिल देव प्रसाद के गाँव पहुंचे सांसद कोशेलेंद्र कुमार ने कहा कि नालंदा एक महान विभूति को खो दिया, कपिल देव प्रसाद तांती समाज के लिए प्रेरणा श्रोत थे। उनकी मौत कि खबर से मैं मर्माहत हूं। ईश्वर इनके परिवार को हिम्मत दे। डीएम शशांक शुभंकर ने उनके निधन पर दुख व्यक्त किया। जिला प्रशासन की ओर से बीडीओ अंजन दत्ता मौजूद थे।

वर्ष 2023 अप्रैल महीने में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने उन्हें नई दिल्ली राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया था। कपिल की इस उपलब्धि से बावन बूटी डिजाइन की राष्ट्रव्यापी पहचान और प्रतिष्ठा बढ़ गई थी।
बिहार में नालंदा जिला मुख्यालय बिहार शरीफ से सटे पूरब बसवन बिगहा में कपिल देव प्रसाद का जन्म पांच अगस्त 1955 को हुआ था। इनकी माता जी का नाम फुलेश्वरी देवी था, इनके पिता का नाम हरि तांती था।कपिल देव प्रसाद के दादा शनिचर तांती ने बावन बूटी की शुरुआत की थी, फिर पिता हरि तांती ने सिलसिले को आगे बढ़ाया। कपिल देव प्रसाद जब 15 साल के थे, तभी उन्होंने इसे रोजगार के रूप में अपना लिया था। साल 2017 में आयोजित हैंडलूम प्रतियोगिता में खूबसूरत कलाकृति बनाने के लिए देश के 31 बुनकरों को राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया था, इनमें नालंदा के कपिलदेव प्रसाद तांती भी शामिल थे।
नालंदा मुख्यालय बिहारशरीफ के बसवन बीघा गांव निवासी कपिल देव प्रसाद की पहचान इसलिए भी है क्योंकि उन्होंने अपने पूर्वजों से सीखे हुनर को लोगों में बांटकर रोजगार का एक माध्यम विकसित किया था। उन्होंने 52 बूटी हस्तकरघा से देश भर में अपनी अलग पहचान बनाई थी।

दस साल की उम्र से ही हथकरघा से बनाएं साड़ीयो में डाल रहे थे बूटी की कसीदी
इन्होंंने दस साल की अवस्था से ही हैंडलूम की साड़ी में बावन बूटी की कसीदियां डालनी शुरू कर दी थी। पांच साल में हुनर में निखार आ गया, जिससे इनके बुनी हुई साड़ियां अधिक पसंद की जाने लगी और इनकी चर्चा बुनकर समाज में होने लगी। बुनकर पद्मश्री कपिल देव प्रसाद तांती के निधन पर देश भर के बुनकर तांती ततवा पान सांसी समाज ने दुख व्यक्त किया है।
पद्मश्री कपिल देव प्रसाद तांती के निधन की खबर से छत्तीसगढ़ बुनकर तांती ततवा पान सांसी समाज कल्याण समिति प्रमुख राजेश प्रसाद तांती ने दुख व्यक्त करते हुए कहा की स्वजाति समाज ने पद्मश्री कपिल देव प्रसाद तांती अमिट पुरूष बहुमूल्य हीरा खो दिया है। बिहार में बुनकर तांती ततवा विलोपित पान सांसी समाज की सदियों पुरानी पारंपरिक पेशा हथकरघा से बनी हुई वस्त्र कपड़े और साड़ियां पर कारीगिरी की जाती रही है।

बिहार में बुनकर तांती ततवा विलोपित पान सांसी जातियों का पारंपरिक पेशा हथकरघा वस्त्र की करीगिरी की पहचान देश दुनियां में कराया
बिहार में बुनकर तांती ततवा विलोपित पान सांसी जातियों का पारंपरिक पेशा हथकरघा वस्त्र कोसा, सूती, मलमली, सिल्क साडियो की करीगिरी की पहचान वर्तमान समय के कालखंड में देश दुनियां में पद्मश्री कपिल देव प्रसाद तांती जी ने दिलाया, स्वर्गीय पद्मश्री कपिल देव प्रसाद तांती के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। स्वजाति समाज के लिए उनका योगदान चिरस्मरणीय रहेगा। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे और शोक संतप्त घड़ी में परिजनों को साहस, हिम्मत प्रदान करे।