
Odisha News BJP and BJD Alliance: एक तस्वीर हजार शब्दों के बराबर होती है… यह सिर्फ कहावत नहीं है. आपने दो दिन पहले मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की मुलाकात वाली तस्वीर नहीं देखी तो फिर से देखिए. सोशल मीडिया पर काफी बातें हो रही हैं. वैसे पीएम जब विपक्ष शासित राज्य में जाते हैं तो सीएम के सामने भी तंज कसने में संकोच नहीं करते. ओडिशा से पहले तेलंगाना में उन्होंने ऐसे ही चुटकी ली थी लेकिन यहां अलग गर्मजोशी दिखी. ऐसे में साफ है कि भाजपा और नवीन बाबू की पार्टी बीजेडी के बीच कुछ पक रहा है. बीजेडी की एक प्रेस रिलीज से भी इसके संकेत मिले हैं. कहा जा रहा है कि 15 साल दूर रहने के बाद BJD लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर एनडीए में वापसी कर सकती है.
एजेंडा भी क्लियर है
जी हां, भाजपा और मोदी सरकार 2047 तक देश को विकसित बनाने का लक्ष्य लेकर चल रही है. कुछ ऐसी ही बातें 2036 तक विकसित ओडिशा बनाने के लिए राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी बीजेडी ने कही हैं. 2036 का साल ओडिशा के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि तब राज्य को 100 साल पूरे हो रहे होंगे. यही वजह है बीजेडी ने मिशन 2036 तैयार किया है. ऐसे में संभावना बढ़ गई है कि दोनों दलों में गठबंधन होने वाला है. अगर यह गठबंधन होता है तो एनडीए को एक और मजबूत क्षेत्रीय दल का साथ मिल जाएगा. इसके शुरुआती संकेत उसी समय मिल गए थे जब पटनायक की पार्टी ने हाल में राज्यसभा चुनावों में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव का समर्थन किया था.
भाजपा में भी हुआ मंथन
हां, दिल्ली में भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के साथ ओडिशा कोर कमेटी की बैठक हुई है. भाजपा के वरिष्ठ नेता जुएल ओरांव ने बताया कि इसमें राज्य की सभी 21 लोकसभा सीटों के साथ-साथ राज्य की सभी विधानसभा सीटों पर चर्चा हुई. जब उनसे राज्य में बीजेडी और भाजपा के गठबंधन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने यह कहते हुए बचने की कोशिश की कि इस बारे में पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही फैसला करेगा.
15 साल पहले टूटा था रिश्ता
भाजपा और बीजद के बीच अलायंस ऐसे समय में हो सकता है जब राज्य में विधानसभा चुनाव भी करीब हैं. हाल के वर्षों में दोनों पार्टियां एक दूसरे की विरोधी रही हैं लेकिन साथ आने से भाजपा का समीकरण मजबूत हो सकता है. रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि सीट शेयरिंग को लेकर दोनों दलों में बातचीत लगभग पूरी हो गई है और अगले कुछ घंटों में इसकी घोषणा हो सकती है. दरअसल, आज यानी 7 मार्च को ही भाजपा के साथ गठबंधन तोड़े पटनायक को 15 साल हो रहे हैं. 2009 के चुनाव से पहले दोनों दलों के रास्ते अलग हो गए थे. भाजपा के लिए यह सुकून देने वाली बात है क्योंकि हाल में नीतीश कुमार के आने से बिहार में एनडीए मजबूत हुआ है.
कल भाजपा और बीजेडी दोनों दलों ने अलग-अलग बैठकें की हैं. भुवनेश्वर में अपने घर पर सीएम पटनायक ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ चर्चा की. बीजेपी ने दिल्ली मुख्यालय में ओडिशा के पार्टी नेताओं के साथ मंथन किया है. पूर्व आईएएस अधिकारी और बीजेडी नेता वीके पांडियन को पटनायक का विश्वासपात्र माना जाता है. उन्होंने बीजेपी के केंद्रीय नेताओं के साथ कई दौर की चर्चा की है.
मोदी और पटनायक की दोस्ती
इस घटनाक्रम के पीछे मोदी- पटनायक दोस्ती की अहम भूमिका है. हां, पीएम मोदी और नवीन पटनायक के बीच अच्छी केमिस्ट्री देखी जाती है. पटनायक की प्रशंसा में पीएम उन्हें ‘लोकप्रिय सीएम’ कहते हैं. पटनायक की छवि एक सरल और सौम्य राजनेता की रही है. उन्होंने राज्य की सियासत तक खुद को केंद्रित रखा, जो भाजपा के पक्ष में जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक सार्वजनिक रूप से एक दूसरे की प्रशंसा करते रहे हैं. मंगलवार को भी मोदी की रैली में ऐसा ही दृश्य देखने को मिला था. बीजद संसद में ज्यादातर समय मोदी सरकार के एजेंडे का समर्थन करती नजर आई.
बीजेडी और बीजेपी में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला
कहा जा रहा है कि बीजद से गठबंधन होने की स्थिति में भाजपा राज्य की ज्यादातर लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी जबकि बीजद विधानसभा की अधिकतर सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. ओडिशा में लोकसभा की 21 और विधानसभा की 147 सीटें हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजद और भाजपा ने 12 और 8 सीटों पर जीत दर्ज की थी. विधानसभा में बीजद और भाजपा ने 112 और 23 सीटों पर कब्जा जमाया था. BJD के इस समय राज्यसभा में 9 सांसद हैं.
बीजेपी राज्य में अपना वोट शेयर बढ़ाना चाहती है जिसमें यह पार्टनरशिप लाभकारी साबित हो सकती है. हिंदीभाषी राज्यों में बीजेपी का दबदबा देखा जाता है, अब पार्टी नेतृत्व पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है.
दंगे भड़के तब भाजपा से तोड़ा रिश्ता
भाजपा और बीजद के बीच 1998 से 2009 यानी करीब 11 साल तक गठबंधन रहा था. दोनों ने साल 2000 में पहली बार विधानसभा चुनाव एक साथ लड़ा था. हालांकि दिसंबर 2008 में कंधमाल जिले में सांप्रदायिक दंगे भड़कने के बाद 2009 चुनाव से पहले बीजेडी ने अलायंस तोड़ दिया. हालांकि बाद के वर्षों में न तो सीएम नवीन बाबू और न ही कभी उनकी पार्टी ने पीएम मोदी या उनकी सरकार पर निशाना साधा. विपक्ष ने उन्हें INDIA अलायंस में भी लाने की कोशिश की थी लेकिन वह नहीं गए.
जब साथ लड़े तो दिखा असर
2004 का लोकसभा चुनाव भाजपा और बीजेडी ने मिलकर लड़ा था. कांग्रेस की केंद्र में सरकार बनी लेकिन राज्य में एनडीए का वोट शेयर ज्यादा रहा था. जी हां, एनडीए को 49 प्रतिशत तो यूपीए को 40 प्रतिशत वोट मिले थे. भाजपा ने 7 और बीजद ने 11 लोकसभा सीटें जीती थीं.